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उपदेश आठ
 

बीगू1

कुछ लोगों ने बीगू का विषय उठाया है। यह बीगू की घटना देखी जाती है। यह न केवल हमारे साधकों के समुदाय में होता है, बल्कि हमारे संपूर्ण मानव समुदाय के बहुत से लोगों के बीच भी देखा जाता है। कुछ लोग अनेक वर्षों तक या दस से भी अधिक वर्षों तक कुछ खाते या पीते नहीं हैं, किन्तु वे अच्छी प्रकार रहते हैं। ऐसे कुछ लोग हैं जो बीगू को किसी विशेष स्तर का सूचक कहते हैं, जबकि दूसरे इसे शरीर के शुध्दिकरण की निशानी मानते हैं। कुछ लोगों द्वारा यह एक उच्च स्तर की साधना प्रक्रिया भी कही जाती है।

वास्तव में, यह उपरोक्त में से कुछ भी नहीं है। तब यह क्या है? बीगू का अर्थ वास्तव में एक विशिष्ट वातावरण की एक विशिष्ट साधना पध्दति से है। इसका प्रयोग किस परिस्थिति में किया जाता है? प्राचीन चीन में, विशेष रूप से धर्मों की स्थापना से पहले, कई अभ्यासी मानव बस्तियों से दूर पर्वतों या गुफाओं में गुप्त रूप से अभ्यास या एकान्तवास साधना करते थे। एक बार ऐसा करने का निर्णय लेने पर, इसमें भोजन उपलब्ध कराने की समस्या आ जाती थी। यदि व्यक्ति बीगू पध्दति का प्रयोग नहीं करता, वह साधना अभ्यास कर ही नहीं पाता और वहाँ भूख और प्यास से मर जाता था। मैं चोंगचिंग2 से वूहान तक फा सिखाने गया, और मैंने यांग्जे नदी पर पूर्व की ओर नाव की सवारी की। मैंने पर्वतों के बीच के भाग में तीन घाटियों के दोनों ओर कुछ गुफाओं को देखा; कई सुप्रसिध्द पर्वतों में भी ये होती हैं। प्राचीनकाल में, गुफा में रस्सी की मदद से चढ़ने के बाद, अभ्यासी गुफा में अभ्यास करने के लिए रस्सी काट देता था। यदि यह व्यक्ति साधना में सफल नहीं हो पाता, वह इसके अन्दर ही मर जाता था। बिना भोजन और पानी के, यह इन विशेष परिस्थितियों में था कि वह इस विशिष्ट साधना पध्दति की मदद लेता था।

कई पध्दतियों में यह प्रक्रिया चली आ रही है, और इसलिए उनमें बीगू सम्मिलित रहता है। बहुत सी पध्दतियों में बीगू सम्मिलित नहीं होता है। आज, अधिकांश पध्दतियाँ जिन्हें सार्वजनिक किया गया है उनमें बीगू सम्मिलित नहीं होता है। हम कह चुके हैं कि व्यक्ति को एक पध्दति में एकाग्रचित होना चाहिए, और आपको वह नहीं करना चाहिए जो कुछ आप मानवीय रूप से चाहते हैं। हो सकता है आप सोचते हों कि बीगू अच्छा है और इसकी इच्छा रखें। आप इसे किस लिए चाहते हैं? कुछ लोग सोचते हैं कि यह अच्छा है और कौतुहल करते हैं, और शायद वे सोचते हैं कि उनके कौशल दिखावे के लिए अच्छे हैं। सभी प्रकार की मानसिकताओं वाले लोग होते हैं। यदि इस प्रणाली को साधना अभ्यास के लिए प्रयोग किया भी जाता है, व्यक्ति को इस भौतिक शरीर को चलाये रखने के लिए अपनी ही शक्ति व्यय करनी पड़ती है। इसलिए, इसका प्रयत्न के अनुरूप लाभ नहीं होता। आप जानते हैं कि विशेष रूप से धर्मों की स्थापना के बाद, ध्यान अवस्था में बैठने के दौरान या मठों में एकान्त साधना के दौरान व्यक्ति को भोजन और चाय उपलब्ध रही है। विशेष रूप से, हम साधना का अभ्यास साधारण मानव समाज के बीच करते हैं। आपको इस प्रणाली को अपनाने की बिल्कुल आवश्यकता नहीं है। इसके अतिरिक्त, यदि आपकी अभ्यास पध्दति में यह सम्मिलित नहीं है, आपको इच्छानुसार अकारण कुछ नहीं करना चाहिए। यदि आप वास्तव में बीगू का अभ्यास करना चाहते हैं, आप कर सकते हैं। जहाँ तक मैं जानता हूँ अक्सर जब कोई गुरु एक उच्च स्तर का अभ्यास सिखाता है और सच्चे रूप से किसी शिष्य का मार्गदर्शन करता है, और यदि उसकी अभ्यास पध्दति में बीगू है, तो यह परिस्थिति आ सकती है। तब भी, वह इसे जनता में नहीं फैला सकता; वह शिष्य को गुप्त रूप से या एकान्तवास अभ्यास के लिए दूर ले जाता है।

आज ऐसे भी चीगोंग गुरु हैं जो बीगू सिखा रहे हैं। क्या बीगू की परिस्थिति आई? अन्तत:, असल में नहीं। इसमें कौन सफल हुआ है? मैंने कई लोगों को अस्पताल में भर्ती होते देखा है, और बहुत से लोगों का जीवन खतरे में है। तब, ऐसी परिस्थिति क्यों है? क्या बीगू का अस्तित्व नहीं होता है? हाँ, यह होता है। किन्तु, यहाँ एक पहलू है: किसी को भी अकारण साधारण मानव समाज की स्थिति को हानि पहुँचाने की अनुमति नहीं है- इसमें बाधा उत्पन्न करने की अनुमति नहीं है। कहने की आवश्यकता नहीं कि पूरे देश में कितने लोगों के खाने और पीने की जरूरत नहीं रह जाएगी, मैं कहूँगा कि इससे वस्तुएँ बहुत सरल हो जाएंगी यदि चांगचुन क्षेत्र में लोगों को खाने ओर पीने की आवश्यकता ही न रहे! हमें खाना बनाने की चिन्ता करने की आवश्यकता ही नहीं रहेगी। किसान खेतों में इतना पसीना बहाते हैं, और अब किसी को खाने की आवश्यकता ही नहीं रहेगी। इससे वास्तव में वस्तुएँ बहुत सरल हो जाएंगी, क्योंकि लोग कुछ भी खाए बिना ही काम करेंगे। उसकी अनुमति कैसे हो सकती है? क्या वह मानव समुदाय कहलाएगा? इसकी निश्चित ही मनाही है, क्योंकि साधारण मानव समाज के साथ इतने बड़े पैमाने पर विघ्न डालने की अनुमति नहीं है।

जब कुछ चीगोंग गुरु बीगू सिखाते हैं, कई लोगों के जीवन खतरे में आ जाते हैं। कुछ लोग बीगू की इच्छा के पीछे पड़े हुए हैं, किन्तु इस मोहभाव को, साधारण लोगों के कई और मोहभावों के बीच, हटाया नहीं गया है। ऐसा व्यक्ति जब कुछ स्वादिष्ट भोजन देखता है उसके मुँह में पानी आएगा। एक बार इस इच्छा के जागृत होने पर, वह इसे नियन्त्रित नहीं कर सकता और भोजन खाने के लिए चिन्तित हो जाएगा। जब उसकी भूख जागेगी, वह खाना चाहेगा; अन्यथा उसे भूख लगेगी। हालांकि, यदि वह खाता है वह उसे उलट देगा। क्योंकि वह खा नहीं सकता, वह बहुत चिन्तित हो जाएगा और डर जाएगा। कई लोग अस्पताल में भर्ती हो जाते हैं और, वास्तव में, कई लोगों का जीवन खतरे में आ जाता है। कई लोग हैं जो मुझे खोजते हैं और ऐसी बिगड़ी हुई स्थिति को संभालने के लिए कहते हैं, और मैं यह नहीं करना चाहता। कुछ चीगोंग गुरु बिना उत्तारदायित्व के कार्य करते हैं। कोई भी उनके लिए इन समस्याओं का समाधान नहीं करना चाहता।

इसके अलावा, यदि आप बीगू के अभ्यास द्वारा समस्या से घिर जाते हैं, तो क्या यह आपके अपने हठ प्रयास द्वारा नहीं है? हम कह चुके हैं कि इन घटनाओं का अस्तित्व होता है, किन्तु वे तथाकथित "उच्च स्तर की अवस्था" या तथाकथित "विशेष प्रतिक्रियाएँ" नहीं हैं। यह केवल एक अभ्यास पध्दति है जो एक विशेष परिस्थिति में प्रयोग की जाती है, इसलिए इसे अधिक नहीं फैलाया जा सकता। बहुत से लोग बीगू के पीछे पड़े रहते हैं और इसे तथाकथित बीगू या अर्ध्द-बीगू में वर्गीकृत करते हैं, और इसे विभिन्न स्तरों में विभाजित करते हैं। कुछ लोग दावा करते हैं कि उन्हें केवल पानी पीने की आवश्यकता होती है, जबकि दूसरे दावा करते हैं कि उन्हें केवल फल खाने की आवश्यकता होती है। वे सब नकली बीगू हैं, और जैसे समय बीतता है, उनका असफल होना निश्चित है। एक सच्चा अभ्यासी बिना कुछ खाए-पिए गुफा में रहेगा- वह सच्चा बीगू है।

ची को चुराना

जब ची को चुराने के बारे में बात की जाती है, कुछ लोग भय से पीले पड़ जाते हैं जैसे एक शेर का नाम ले लिया गया हो, और वे इतने भयभीत हो जाएंगे कि चीगोंग का अभ्यास भी नहीं करेंगे। साधना पागलपन, ची चुराने, आदि की घटनाओं की अफवाहों के कारण, साधकों के समाज में कई लोग चीगोंग का अभ्यास करने या चीगोंग के बारे में जानने से घबराते हैं। यदि इस प्रकार की अफवाहें नहीं होतीं, शायद और अधिक लोग चीगोंग का अभ्यास कर रहे होते। किन्तु निम्न नैतिकगुण वाले ऐसे चीगोंग गुरु हैं जो विशेष रूप से इन वस्तुओं को सिखाते हैं। इससे साधकों के समाज में बहुत उलझन मची है। वास्तव में, यह उतना भयावह नहीं है जितना उन्होंने वर्णन किया है। हम कह चुके हैं कि ची केवल ची होती है, हालांकि आप इसे "मिश्रित प्राथमिक ची" और यह ची या वह ची कह सकते हैं। जब तक किसी व्यक्ति के शरीर में ची होती है, वह आरोग्य और स्वास्थ्य के स्तर पर होता है और अभी अभ्यासी नहीं बना है। जब तक उसके पास ची है, इसका अर्थ है कि उसका शरीर अभी बहुत अधिक शुध्द नहीं हुआ है और इसलिए इसमें अब भी रोगग्रस्त ची है- यह निश्चित है। वह व्यक्ति जो ची को चुराता है, वह भी ची के स्तर पर है। हमारे अभ्यासियों के बीच, उस अशुध्द ची को कौन चाहेगा? एक व्यक्ति जो अभ्यासी नहीं है उसके शरीर की ची बहुत कुछ अशुध्द होती है, हालाँकि यह चीगोंग अभ्यास करने से स्वच्छ हो सकती है। इसलिए रोग के स्थान पर उच्च घनत्व के काले पदार्थ का एक बहुत बड़ा पुँज दिखाई देगा। अभ्यास निरन्तर रखने पर, यदि व्यक्ति वास्तव में रोग से ठीक हो जाता है और स्वस्थ हो जाता है, उसकी ची धीरे-धीरे पीली हो जाएगी। यदि वह आगे अभ्यास नियमित रखता है, रोग वास्तव में ठीक हो जाएगा, और उसकी ची भी लुप्त हो जाएगी। वह दुग्ध श्वेत शरीर की अवस्था में प्रवेश कर जाएगा।

कहने का अर्थ है, यदि किसी के पास ची है, तो उसके पास अब भी रोग हैं। हम अभ्यासी हैं- हमें अभ्यास में ची की क्या आवश्यकता है? हमारे अपने शरीरों को शुध्द करने की आवश्यकता है। हमें उस अशुध्द ची की आवश्यकता क्यों होनी चाहिए? निश्चित ही नहीं। जो ची चाहता है, अभी भी ची के स्तर पर है। ची के उस स्तर पर होने के कारण, वह अच्छी ची और बुरी ची के बीच भेद नहीं कर सकता, क्योंकि उसमें वह योग्यता नहीं है। आपके शरीर के तानत्येन की सच्ची ची उसके द्वारा नहीं हटाई जा सकती क्योंकि वह मूल ची केवल किसी उच्च स्तर की सिध्दियों वाले व्यक्ति द्वारा हटाई जा सकती है। जहाँ तक आपके शरीर की अशुध्द ची की बात है, उसे यह चुराने दीजिए- यह कोई बड़ी बात नहीं है। अभ्यास के दौरान, यदि मैं स्वयं को ची से भरना चाहूँ, केवल इस पर एक विचार के द्वारा, जल्द ही मेरा पेट ची से भर जाएगा।

ताओ विचारधारा में खड़े हो कर करने का व्यायाम त्येन-ज ज्वांग 3 सिखाया जाता है जबकि बुध्द विचारधारा में सिर के ऊपर ची को उड़ेलना सिखाया जाता है। ब्रह्माण्ड में ची बहुतायात में है जिससे आप स्वयं को हर रोज भर सकते हैं। लाओगोंग बिंदु और बाई-ह्ने 4 बिंदु के खुल जाने पर, तानत्येन पर ध्यान केन्द्रित रखते हुए आप अपने हाथों द्वारा स्वयं को ची से भर सकते हैं। कुछ देर में ही आप इससे भर जाएंगे। भले ही आप कितनी भी ची से भरे हों, इसका क्या उपयोग है? जब कुछ लोगों ने ची का बहुत अभ्यास किया होता है, उनकी उंगलियाँ और शरीर इस प्रकार महसूस होते हैं जैसे सूज गये हों। जब और लोग ऐसे व्यक्ति के पास जाते हैं, उन्हें उसके चारों ओर एक प्रभाव क्षेत्र महसूस होगा : "वास्तव में, आपने बहुत अच्छा अभ्यास किया है।" मैं कहूँगा कि यह कुछ नहीं है। आपका गोंग कहाँ है? यह अब भी ची का अभ्यास है, जो गोंग का स्थान नहीं ले सकता भले ही व्यक्ति के पास कितनी भी ची क्यों न हो। ची के अभ्यास का प्रयोजन व्यक्ति के शरीर के अन्दर की ची को बाहर की अच्छी ची से प्रतिस्थापित करना है, और शरीर को शुध्द करना है। व्यक्ति ची को किसलिए एकत्रित करता है? इस स्तर पर, बिना किसी मूलभूत बदलाव के, ची अब भी गोंग नहीं है। आपने कितनी भी ची क्यों न चुराई हो, आप अब भी ची के एक बड़े बोरे के अलावा कुछ नहीं हैं। इसका क्या उपयोग है? यह अभी उच्च शक्ति पदार्थ में रूपांतरित नहीं हुई है। इसलिए, आप को किस बात का भय होना चाहिए? यदि वह वास्तव में चाहता है तो उसे ची को चुराने दीजिए।

आप सब यह सोचें : यदि आपके शरीर में ची है, तो इसमें रोग हैं। तब, जब व्यक्ति आपकी ची चुराता है, क्या वह आपकी रोगग्रस्त ची भी नहीं चुरा रहा? वह इन दोनों में बिल्कुल भेद नहीं कर सकता, क्योंकि जो व्यक्ति ची चाहता है वह भी ची के स्तर पर होता है और उसके पास कोई योग्यताएँ नहीं होतीं। जिस व्यक्ति के पास गोंग होता है वह ची नहीं चाहता- यह निश्चित है। यदि आप इस पर विश्वास नहीं करते, हम एक प्रयोग कर सकते हैं। यदि कोई व्यक्ति वास्तव में आपकी ची चुराना चाहता है, आप वहाँ खड़े होकर उसे चुराने दें। आप अपना मन यहाँ अपने शरीर को ब्रह्माण्ड की ची से भरने पर केन्द्रित करें, जबकि वह आपके पीछे आपकी ची चुरा रहा है। आप देखेंगे कि यह कितनी अच्छी स्थिति है, क्योंकि यह आपके शरीर के शुध्दिकरण को शीघ्र करने में आपकी मदद करेगी, और आपको अपने शरीर में ची भरने और निष्कासित करने की आवश्यकता नहीं रहेगी। क्योंकि उसका एक बुरा मनोभाव है और वह दूसरों से कुछ चुराता है, हालांकि उसने जो चुराया है वह कोई अच्छी वस्तु नहीं है, उसने एक ऐसा कार्य किया है जिससे सद्गुण की हानि होती है। इसलिए, वह आपको सद्गुण देगा। यह एक परिधि बन जाता है जिसमें जब वह यहाँ आपकी ची लेता है, वह वहाँ आपको सद्गुण देता है। व्यक्ति जो ची को चुराता है यह नहीं जानता- यदि वह यह जानता होता, वह इसे करने का साहस नहीं करता!

वे सब लोग जो ची को चुराते हैं उनके चेहरे नीलापन लिए होते हैं, और वे सब इसी प्रकार होते हैं। कई लोग जो उद्यानों में चीगोंग अभ्यास करने जाते हैं वे रोग को दूर करने की इच्छा रखते हैं, और उनके पास सभी प्रकार के रोग होते हैं। जब कोई व्यक्ति किसी रोग को ठीक कर रहा होता है, उसे रोगग्रस्त ची को निष्कासित करना चाहिए। किन्तु जो व्यक्ति ची को चुराता है वह ची को निष्कासित नहीं करेगा और वह अपने पूरे शरीर पर सभी प्रकार की रोगग्रस्त ची को एकत्रित कर लेगा। यहाँ तक कि उसका आन्तरिक शरीर भी बहुत काला पड़ जाता है। क्योंकि वह हमेशा सद्गुण की हानि करता रहता है, उसका रूपरंग काला पड़ जाता है। कर्म का बहुत अधिक क्षेत्र होने के कारण और सद्गुण की अत्यधिक हानि होने के कारण, वह अन्दर-बाहर से काला पड़ जाएगा। व्यक्ति जो ची को चुराता है यदि वह स्वयं इस बदलाव को अनुभव कर सके और जान सके कि वह इस मूर्खतापूर्ण कार्य से दूसरों को सद्गुण दे रहा है, वह ऐसा बिल्कुल नहीं करेगा।

कुछ लोगों ने ची को बहुत अधिक चर्चित कर दिया है : "यदि आप अमेरिका में हैं, आप वह ची ग्रहण कर सकते हैं जो मैं निष्कासित करता हूँ।" "आप दीवार के दूसरी ओर प्रतीक्षा कर सकते हैं, और आप ची प्राप्त करेंगे जो मैं निष्कासित करूँगा।" कुछ लोग बहुत संवेदनशील होते हैं और जब ची निष्कासित की जाती है वे इसे महसूस कर सकते हैं। किन्तु ची इस आयाम में भ्रमण नहीं करती। यह दूसरे आयाम में गति करती है जहाँ ऐसी कोई दीवार नहीं है। जब कोई चीगोंग गुरु एक खुले क्षेत्र में ची निष्कासित करता है आप कुछ महसूस क्यों नहीं करते? वहाँ दूसरे आयाम में एक विभाजन है। इस प्रकार, ची की इतनी भेदन शक्ति नहीं होती जितना लोगों ने वर्णन किया है।

जो वास्तव में प्रभावशाली होता है वह गोंग है। जब कोई अभ्यासी गोंग निष्कासित कर सकता है, उसके पास कोई ची नहीं होती और वह उच्च शक्ति पदार्थ छोड़ सकता है, जो दिव्य नेत्र के द्वारा प्रकाश के रूप में दिखाई पड़ता है। जब यह दूसरे व्यक्ति के पास पहुँचता है, यह उस व्यक्ति को गरमाहट महसूस कराता है; यह एक साधारण व्यक्ति में ठहराव ला सकता है। हालांकि, यह अब भी पूरी तरह रोगों को ठीक करने का ध्येय प्राप्त नहीं कर सकता, क्योंकि इसका केवल एक ठहराव लाने का प्रभाव होता है। रोगों को पूरी तरह ठीक करने के लिए, दिव्य सिध्दियाँ आवश्यक हैं। प्रत्येक रोग के लिए एक विशिष्ट दिव्य सिध्दि होती है। अत्यन्त सूक्ष्म स्तर पर, गोंग का प्रत्येक सूक्ष्म कण आपकी अपनी छवि धारण कर लेता है। यह लोगों को पहचान सकता है और प्रज्ञावान होता है, क्योंकि यह उच्च शक्ति पदार्थ है। यदि कोई इसे चुरा ले, यह वहाँ कैसे रह सकता है? यह वहाँ नहीं रूकेगा और इसे वहाँ नहीं रखा जा सकता, क्योंकि यह उस व्यक्ति की अपनी संपत्ति नहीं है। जहाँ तक उन सच्चे अभ्यासियों की बात है, उनके गोंग विकसित करने के बाद उनकी देखभाल उनके गुरुओं द्वारा की जाती है। आपका गुरु देख रहा है आप क्या करते हैं। जब आप दूसरे व्यक्ति से वस्तुएँ लेने का प्रयत्न करते हैं, उस व्यक्ति का गुरु इसे नहीं होने देगा।

ची एकत्रित करना

उच्च स्तरों पर साधना अभ्यास सिखाने में, ची चुराने और ची एकत्रित करने के विषय ऐसे नहीं हैं जिन्हें हम सभी के लिए सुलझाने में मदद करेंगे। यह इसलिए क्योंकि मुझे अभी भी साधना अभ्यासों की प्रसिध्दि बनाए रखने और कुछ अच्छे कार्य करने की इच्छा है। मैं इस प्रकार की बुरी घटनाओं को उजागर करूँगा, जिनके बारे में विगत में किसी ने नहीं बताया। मैं आप सब को यह जानने देना चाहता हूँ जिससे कुछ लोग हर समय बुरे कार्य न करें। कुछ लोग जो चीगोंग की सच्चाई नहीं जानते हैं इसके बारे में बात करने से हमेशा घबराते हैं।

ब्रह्माण्ड में ची बहुतायात में है। कुछ लोग आकाशिक येंग ची और भूमि की यिन ची के बारे में बात करते हैं। क्योंकि आप भी ब्रह्माण्ड के एक तत्व हैं, आप आगे बढ़ कर ची एकत्रित कर सकते हैं। किन्तु कुछ लोग ब्रह्माण्ड से ची एकत्रित नहीं करते। वे लोगों को पौंधों से ची एकत्रित करना सिखाने में विशेषज्ञ होते हैं। उन्होंने अपने अनुभव भी संक्षेप में लिखे हैं : इस ची को कैसे और कब एकत्रित करें, चिनार वृक्ष की ची सफेद होती है, या चीड़ वृक्ष की ची पीली होती है। कोई यह भी दावा करता है : "हमारे घर के सामने एक वृक्ष था। क्योंकि मैंने इसकी ची एकत्रित कर ली यह मर गया।" यह किस प्रकार की योग्यता है? क्या यह एक बुरा कार्य नहीं है? यह सब जानते हैं कि जब हम वास्तव में साधना अभ्यास करते हैं, हम अच्छे संदेश चाहते हैं और ब्रह्माण्ड की प्रकृति से आत्मसात होना चाहते हैं। क्या आपको करुणा का अभ्यास नहीं करना चाहिए? ब्रह्माण्ड की प्रकृति, सत्य-करुणा-सहनशीलता, से आत्मसात होने के लिए, व्यक्ति को करुणा का अभ्यास करना आवश्यक है। यदि आप सदैव बुरे कार्य करते हैं, आप अपना गोंग कैसे बढ़ा सकेंगें? आपका रोग कैसे ठीक किया जा सकता है? क्या यह उसके विपरीत नहीं है जो हमारे अभ्यासियों को करना चाहिए? वह भी जीवों को मारने और बुरे कार्य करने जैसा है! कोई कह सकता है : "आप जितना अधिक कहते हैं, यह उतना ही अविश्वसनीय हो जाता है- एक पशु को मारना एक जीव को मारना है, और एक पौधे को मारना भी एक जीव को मारना है।" वास्तव में, यह इसी प्रकार है। बुध्दमत में संसार के बारे में कहा गया है। हो सकता है आपने संसार के चक्र में एक पौधे के रूप में जन्म लिया हो। यह इस प्रकार बुध्दमत में कहा गया है। हम यहाँ इसके बारे में उस प्रकार बात नहीं करते, किन्तु हम सभी को बताते हैं कि वृक्षों में जीवन होता है। न केवल उनमें जीवन होता है, बल्कि उनमें बहुत उच्च स्तरीय विचार प्रक्रिया भी होती है।

उदाहरण के लिए, अमेरिका में एक व्यक्ति है जो इलेक्ट्रॉनिक शिक्षा का विशेषज्ञ है और वह दूसरों को झूठ पकड़ने के उपकरणों का प्रयोग करना सिखाता है। एक दिन, उसे अचानक एक विचार आया। उसने झूठ पकड़ने के उपकरण के दोनों सिरों को एक पौधे पर लगा दिया और इसकी जड़ों में पानी डाला। उसने तब पाया कि झूठ पकड़ने के उपकरण के इलेक्ट्रॉनिक पेन ने तुरन्त ही एक घुमावदार रेखा खींच दी। यह घुमावदार रेखा उसी प्रकार खिंची थी जैसे जब मानव मस्तिष्क एक क्षण भर का उत्साह या प्रसन्नता उत्पन्न करता है। उस पल, वह आश्चर्यचकित रह गया। एक पौधे में भावनाएँ कैसे हो सकती हैं? वह सड़क पर जा कर चीखना चाहता था : "पौधों में भावनाएँ होती हैं!" इस घटना से ज्ञान पाने के बाद, वह इस क्षेत्र में शोध करता रहा और उसने अनेक प्रयोग किए।

एक बार उसने दो पौधों को एक साथ रख दिया और अपने छात्र को एक पौधे को दूसरे पौधे के सामने कुचल कर मार डालने के लिए कहा। इसके बाद वह दूसरे पौधे को एक कमरे में ले गया और उसे एक झूठ पकड़ने के उपकरण से जोड़ दिया। उसने अपने पाँच छात्रों को उस कमरे में बारी-बारी से प्रवेश करने के लिए कहा। जब पहले चार छात्र कमरे में आए तो पौधे ने कोई प्रतिक्रिया नहीं की। जब पांचवाँ छात्र- जिसने पौधे को नष्ट किया था- कमरे में आया, इससे पहले कि वह पौधे के पास आता, इलेक्ट्रॉनिक पेन ने तुरन्त एक घुमावदार रेखा खींची जो केवल तभी आती है जब कोई व्यक्ति भयभीत होता है। उसे वास्तव में झटका लगा! इस घटना से एक बहुत महत्वपूर्ण विषय सामने आता है : हम सदैव विश्वास करते रहे हैं कि मनुष्य एक उच्च स्तर का जीवन है जिसमें संवेदनशील क्रियाएँ होती हैं जो वस्तुओं में भेद कर सकती हैं और एक मस्तिष्क है जो वस्तुओं का विश्लेषण कर सकता है। एक पौधा कैसे वस्तुओं में भेद कर सकता है? क्या इससे यह पता नहीं चलता कि उनके भी संवेदनशील अंग होते हैं? विगत में, यदि किसी ने कहा होता कि पौधों के संवेदनशील अंग, विचारशील मन, भावनाएँ होते हैं, और वे लोगों को पहचान सकते हैं, इस व्यक्ति को अंधविश्वासी कहा जाता। इनके अलावा, ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ पहलुओं में वे हमारे आज के लोगों से भी आगे हैं।

एक दिन उसने झूठ पकड़ने के उपकरण को एक पौधे से जोड़ दिया और सोचा : "मैं किस प्रकार का प्रयोग करूँ? मैं इसकी पत्तियों को आग से जला कर देखता हूँ कि यह कैसे प्रतिक्रिया करता है।" इस विचार से- इससे पहले वह पत्तियों को जला पाता- इलेक्ट्रोनिक पेन ने तुरन्त ही एक घुमावदार रेखा खींची जो उसी प्रकार की थी जो केवल तब बनती है जब कोई मदद के लिए चिल्लाता है। इस उच्च संवेदनशील क्रिया को विगत में मन को पढ़ना कहा जाता था; यह एक छिपी हुई मानव क्रिया है और एक सहज योग्यता है। किन्तु समस्त मानवजाति आज भ्रष्ट हो चुकी है। उन्हें दोबारा प्राप्त करने के लिए, आपको आरम्भ से साधना का अभ्यास करना होगा और अपने मूल, सच्चे आत्मस्वभाव या अपनी मूल प्रकृति की ओर लौटना होगा। किन्तु पौधे में ये होती हैं, और यह जानता है कि आपके मन में क्या है। यह बहुत आश्चर्यजनक लगता है, किन्तु यह एक वास्तविक वैज्ञानिक परीक्षण था। उसने विभिन्न परीक्षण किए हैं, जैसे दूरवर्ती नियन्त्रण की योग्यता का परीक्षण। उसके शोध-पत्रों ने छपने के बाद, पूरे जगत में एक सनसनी फैला दी।

विभिन्न देशों के जीव-वैज्ञानिकों ने जिनमें हमारे देश के भी सम्मिलित हैं ने इस क्षेत्र में शोध आरम्भ कर दिया है, और इसे अब अन्धविश्वास जैसा नहीं माना जाता। एक और दिन मैंने कहा था कि हमारी मानवजाति ने जो आज अनुभव किया है, आविष्कार किया है, और खोजा है वह हमारी वर्तमान पाठय-पुस्तकों को बदलने के लिए बहुत है। पारम्परिक मानसिकताओं के प्रभाव के कारण, हालांकि, लोग उन्हें स्वीकार करने में अनिच्छुक रहते हैं। न ही कोई इन वस्तुओं को प्रणालीबध्द संकलित कर रहा है।

उत्तार-पूर्व के एक उद्यान में, मैंने देखा कि चीड़ के वृक्षों का एक समूह मर गया था। कोई नहीं जानता कि कुछ लोग वहाँ किस प्रकार के चीगोंंग का अभ्यास कर रहे थे : वे भूमि पर लेट कर सब ओर घूमते और इसके बाद अपने पैरों को एक ओर रख कर और हाथों को दूसरी ओर वे पेड़ों से ची एकत्रित करते। इसके बाद जल्द ही, वहाँ के सभी चीड़ के वृक्ष पीले पड़ गए और मृत हो गए। जो उन्होंने किया वह एक अच्छा कार्य था या बुरा कार्य? हमारे अभ्यासियों के दृष्टिकोण से, यह जीवों को मारने जैसा था। आप एक अभ्यासी हैं। इस प्रकार, ब्रह्माण्ड की प्रकृति के साथ निरन्तर आत्मसात होने और अपनी उन बुरी वस्तुओं को बाहर निकालने के लिए, आपका एक अच्छा व्यक्ति होना आवश्यक है। एक साधारण व्यक्ति के दृष्टिकोण से भी, एक अच्छा कार्य नहीं था। यह सरकारी संपत्ति का दुरूपयोग करना था, और इससे हरे-भरे वातावरण और प्राकृतिक सन्तुलन को हानि पहुँची। यह किसी भी दृष्टिकोण से एक अच्छा कार्य नहीं है। ब्रह्माण्ड में बहुत सी ची है, और आप जितना चाहें उतना इसे एकत्रित कर सकते हैं। कुछ लोगों के पास बहुत शक्ति होती है। एक विशिष्ट स्तर पर अभ्यास करने पर, वे अपने हाथों को हिला कर वास्तव में एक बड़े क्षेत्र के पौधों की ची एकत्रित कर सकते हैं। तब भी, वह कुछ और नहीं केवल ची है। भले ही आप इसे कितना भी एकत्रित करें, इसका क्या उपयोग है? जब कुछ लोग किसी उद्यान में जाते हैं, वे कुछ और नहीं करते। एक दावा करता है : "मुझे चीगोंग अभ्यास करने की आवश्यकता नहीं है। जब मैं चारों ओर टहलता हूँ तो ची को एकत्रित करना भर पर्याप्त होता है, और मेरा अभ्यास पूर्ण हो जाता है। ची को प्राप्त करना पर्याप्त होता है।" वे सोचते हैं कि ची गोंग है। जब लोग इस व्यक्ति के पास आते हैं, वे महसूस करेंगे कि उसका शरीर बहुत सर्द है। क्या पौधों की ची यिन प्रकृति की नहीं होती? एक अभ्यासी को यिन और येंग में संतुलन बना कर रखना चाहिए। हालांकि इस व्यक्ति के शरीर से चीड़ के वृक्ष के तेल की गंध आती है, हो सकता है वह अभी भी सोचता है कि वह अपने अभ्यास में अच्छा कर रहा है।

जो कोई साधना अभ्यास करता है वही गोंग प्राप्त करेगा

कौन गोंग का अभ्यास करता है और कौन गोंग प्राप्त करेगा का विषय बहुत महत्वपूर्ण है। जब मुझे फालुन दाफा के लाभ बताने के लिए कहा जाता है, मैं कहता हूँ कि फालुन दाफा गोंग द्वारा अभ्यासियों को संवर्धित कर सकता है और इसलिए अभ्यास के समय को कम कर सकता है। यह व्यक्ति के पास अभ्यास के लिए समय न होने और तब भी निरन्तर संवर्धित होते रहने की समस्या को हल करता है। साथ ही, हमारा मन और शरीर का एक सच्चा साधना अभ्यास है। हमारे भौतिक शरीरों में महान बदलाव आएँगे। फालुन दाफा का एक और भी लाभ है, जो महानतम है, जिसका मैंने पहले उल्लेख नहीं किया। केवल आज हम इसे उजागर कर रहे हैं। यह इसलिए क्योंकि इसमें ऐतिहासिक महत्व के एक मुख्य पहलू का समावेश है और इसका साधकों के समाज पर एक बड़ा प्रभाव है, इतिहास में किसी ने भी इसे प्रकट करने का साहस नहीं किया, और न ही किसी को इसे उजागर करने की अनुमति है। किन्तु मेरे पास इसे बताने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

कुछ शिष्यों ने कहा है : "प्रत्येक शब्द जो गुरु ली होंगजी ने कहा है एक दिव्य रहस्य है और दिव्य रहस्यों को प्रकट करना है।" हम, हालांकि, वास्तव में लोगों को उच्च स्तरों की ओर ले जा रहे हैं, अर्थात लोगों को बचा रहे हैं। हम हर किसी के लिए उत्तारदायी होने की जिम्मेदारी निभा सकते हैं। इसलिए, यह दिव्य रहस्य को उजागर करना नहीं है। यदि कोई इसके बारे में बिना जिम्मेदारी के बात करता है, तो वह दिव्य रहस्यों को उजागर करना है। आज हम इस विषय को सार्वजनिक कर रहे हैं कि कौन गोंग का अभ्यास करता है और कौन गोंग को प्राप्त करता है। मेरे विचार में, आज सभी अभ्यास- जिनमें संपूर्ण इतिहास के बुध्द विचारधारा, ताओ विचारधारा, और चीमन विचारधारा के अभ्यास सम्मिलित हैं- व्यक्ति की सह आत्मा का संवर्धन करते हैं, और यह सह आत्मा है जिसे गोंग प्राप्त होता है। मुख्य आत्मा जिसकी हम बात कर रहे हैं उसका संदर्भ हमारे अपने मन से है। व्यक्ति को चेतन होना चाहिए कि वह किस बारे में सोच रहा है या कर रहा है- वह आपका वास्तविक आत्मस्वरूप है। किन्तु आप यह बिल्कुल भी नहीं जानते कि आपकी सह आत्मा क्या करती है। हालांकि आप और यह एक साथ समान नाम, समान रूप के साथ पैदा हुए हैं, और एक ही शरीर को नियन्त्रित करते हैं, यथार्थ में यह आप नहीं है।

इस ब्रह्माण्ड में एक सिध्दान्त है : जो कोई त्याग करता है प्राप्त करता है। जो कोई साधना का अभ्यास करता है गोंग प्राप्त करता है। संपूर्ण इतिहासकाल में, सभी पध्दतियों ने लोगों को सिखाया है कि अभ्यास के दौरान वे अचेतन अवस्था में रहें, और यह कि व्यक्ति को कुछ और नहीं सोचना चाहिए। तब व्यक्ति को एक गहन अचेतनता में होना चाहिए जब तक, अन्त में, वह हर वस्तु की सुध-बुध नहीं खो देता। कुछ लोग तीन घण्टे तक ध्यानावस्था में बैठते हैं जैसे केवल एक पल ही बीता हो। क्या उसने वास्तव में अभ्यास किया? वह स्वयं भी इसके बारे में कुछ नहीं जानता। विशेष रूप से, ताओ विचारधारा सिखाती है की शशन 5 की मृत्यु होती है और मूल आत्मा का जन्म होता है। जो "शशन" का अर्थ है हम उसे "मुख्य आत्मा" कहते हैं, और जो इसमें "मूल आत्मा" का अर्थ है उसे हम "सह आत्मा" कहते हैं। यदि आपके शशन की वास्तव में मृत्यु हो जाए, तब आप वास्तव में मृत हो जाएँगे, और आपके पास वास्तव में मुख्य आत्मा नहीं होगी। किसी दूसरी पध्दति के व्यक्ति ने मुझे बताया : "गुरुजी, जब मैं अभ्यास करता हूँ मैं घर में किसी को पहचान नहीं पाता।" एक और व्यक्ति ने मुझे बताया : "मैं और लोगों की तरह अभ्यास नहीं करता जो प्रात:काल या देर रात में अभ्यास करते हैं। घर वापस जाकर, मैं एक सोफे पर लेट जाता हूँ और अपने शरीर से बाहर जाकर अभ्यास करता हूँ। वहाँ लेट कर मैं स्वयं को अभ्यास करते हुए देखता हूँ।" मुझे यह बहुत दु:खद लगा, किन्तु यह दु:खद भी नहीं था।

वे सह आत्मा को क्यों बचाते हैं? ल्यू दोंगबिन6 ने एक बार एक कथन कहा था : "मैं एक मनुष्य के स्थान पर एक पशु को बचाना चाहूँगा।" वास्तव में, लोगों का ज्ञानोदय होना अत्यन्त कठिन है क्योंकि साधारण लोग साधारण मानव समाज के भ्रमजाल में फँसे हैं। व्यावहारिक लाभ उनके सामने होने के कारण, वे मोहभाव नहीं छोड़ सकते। यदि आप इस पर विश्वास नहीं करते, इस कक्षा की समाप्ति के बाद, कुछ लोग इस सभागार से दोबारा एक साधारण व्यक्ति की भाँति बाहर निकलेंगे। यदि कोई उन्हें नाराज करता है या उनसे भिड़ जाता है, वे उससे संभल नहीं पाते। कुछ समय पश्चात, वे अपना बर्ताव एक अभ्यासी की भाँति बिल्कुल नहीं करते। अनेक ताओ गुरुओं ने इतिहास में यह जाना है : मनुष्यों को बचाना बहुत कठिन होता है, क्योंकि उनकी मुख्य आत्मा बहुत भ्रमित होती है। कुछ लोगों का ज्ञानप्राप्ति का गुण अच्छा होता है और वे तुरन्त एक इशारे से समझ जाएँगे। कुछ लोग आप पर विश्वास नहीं करेंगे भले ही आप कुछ भी कहें। वे सोचते हैं कि आप बड़बोली बातें कर रहे हैं। हम व्यक्ति के नैतिकगुण की साधना के बारे में इतनी अधिक बात कर रहे हैं, किन्तु यह व्यक्ति जब साधारण लोगों के बीच होता है तो अब भी हमेशा की तरह बर्ताव करता है। वह सोचता है कि उसके दायरे के वास्तविक और दृश्यमान लाभ व्यावहारिक हैं, और वह उनका अनुसरण करेगा; गुरु का फा भी उचित जान पड़ता है, किन्तु उसका पालन नहीं किया जा सकता। मुख्य आत्मा को बचाना सबसे कठिन होता है, जबकि सह आत्मा दूसरे आयामों के कुछ दृश्यों को देख सकती है। इसलिए वे सोचते हैं : "मैं आपकी मुख्य आत्मा को क्यों बचाऊँ? आपकी सह आत्मा भी आप हैं। यदि मैं इसे बचाता हूँ तो क्या यह समान नहीं होगा? यह सब आप हैं, इसलिए जो कोई भी इसे प्राप्त करता है वह इसी प्रकार होगा जैसे आप इसे प्राप्त करते हैं।"

मैं उनके अभ्यासों की प्रणालियों का विशेष रूप से वर्णन करना चाहूँगा। यदि किसी के पास दूरदृष्टि की दिव्य सिध्दि हो, कदाचित वह यह दृश्य देखेगा : जब आप ध्यान में बैठते हैं, जैसे ही आप अचेतन अवस्था में पहुँचते हैं, आप जैसे स्वरूप वाला कोई अचानक ही आपके शरीर को छोड़ देगा। यदि आप भेद करना चाहें, आपकी अपनी चेतना कहाँ हैं? आप यहीं बैठे हैं। जब आप उस व्यक्ति को आपका शरीर छोड़ते हुए देखते हैं, गुरु इस व्यक्ति को साधना का अभ्यास कराने के लिए गुरु द्वारा रूपांतरित एक आयाम में ले जाएगा। यह कोई अतीत का समुदाय, आज का समुदाय, या दूसरे आयाम का समुदाय हो सकता है। व्यक्ति को एक या दो घंटे रोज अभ्यास सिखाया जाएगा और वह अनेक कठिनाइयों से गुजरेगा। जब व्यक्ति अभ्यास से वापस लौटता है, आप भी अचेतनता से जाग जाएँगे। यह स्थिति उन लोगों के लिए है जो देख सकते हैं।

यह और भी खेदजनक है यदि व्यक्ति नहीं देख सकता। इस प्रकार का व्यक्ति बिना कुछ जाने हुए दो घण्टे अचेतनता में बैठने के बाद जागता है। अभ्यास के तरीके में, कुछ लोग दो या तीन घण्टे के लिए सो जाते हैं और स्वयं को पूरी तरह दूसरों को दे देते हैं। यह एक निश्चित अवधि के लिए रोज ध्यान में बैठ कर भागों में किया जाता है। दूसरे प्रकार का एक साथ पूरा किया जाता है। सभी ने बौधिधर्म के बारे में सुना होगा, जो एक दीवार के सामने नौ वर्ष तक बैठे थे। विगत में, ऐसे अनेक भिक्षु थे जो दशकों के लिए बैठते थे। इतिहास में, सबसे अधिक समय तक बैठने का उच्चमान नब्बे वर्ष का है। कुछ इससे भी अधिक समय के लिए बैठे थे। उनकी पलकों पर भारी धूल जम गई और शरीरों पर घास उग गई, वे निरन्तर वहाँ बैठे रहे। ताओ विचारधारा में भी कुछ इसे सिखाते हैं। विशेषरूप से, चीमन विचारधारा में कुछ पध्दतियाँ सोने को अभ्यास के एक प्रकार की तरह सिखाती हैं। अचेतन अवस्था से उठे बिना व्यक्ति दशकों तक सो सकता है, और वह उठता नहीं है। किन्तु किसने अभ्यास किया है? व्यक्ति की सह आत्मा ने बाहर जाकर अभ्यास किया है। यदि वह इसे देख सकता, वह पायेगा कि गुरु उसकी सह आत्मा को अभ्यास के लिए ले जा रहे हैं। सह आत्मा के पास भी बहुत कर्म हो सकता है, और गुरु के पास पूरे कर्म को हटाने की योग्यता नहीं होती। इसलिए, गुरु इसे कहता है : "तुम यहाँ अभ्यास करो। मैं जा रहा हूँ और कुछ देर में वापस आऊँगा। तुम मेरी प्रतीक्षा करना।"

गुरु जानता है कि वास्तव में क्या होगा, किन्तु उसे इस प्रकार करना आवश्यक है। अन्तत: एक असुर इसको डराने के लिए या एक अप्सरा में रूपांतरित होकर इसे लुभाने के लिए आएगा- सभी प्रकार की घटनाएँ होंगी। तब असुर यह जानेगा इस पर वास्तव में कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा। यह इसलिए क्योंकि सह आत्मा के लिए साधना अभ्यास करना अपेक्षाकृत सरल होता है, क्योंकि यह सत्य जान सकती है। निराश होकर, प्रतिशोध के लिए असुर इसे मारने का प्रयत्न करेगा, और वास्तव में इसे मार देगा। उसके साथ, तुरन्त ही इसके ऋण का भुगतान हो जाएगा। मृत्यु के पश्चात, सह आत्मा एक घुएँ की तरह निकल कर उड़ेगी और एक बहुत निर्धन परिवार में पुनर्जन्म लेगी। कम उम्र से ही बालक कष्ट झेलने लगेगा। जब यह बड़ा होगा, गुरु वापस आ जायेगा। निश्चित ही, बालक उसे नहीं पहचान सकता। दिव्य सिध्दियों द्वारा, गुरु उसकी दबी हुई स्मृति को खोल देगा। इसे तुरन्त सब याद आ जायेगा। "क्या यह मेरे गुरु नहीं हैं?" गुरु इसे बताएगा : "अब, अभ्यास आरम्भ करने का समय आ गया है।" इस प्रकार, कई वर्ष पश्चात गुरु उसे शिक्षाएँ प्रदान करेगा।

शिक्षा के बाद, गुरु इसे फिर बताएगा : "तुम्हारे पास अब भी बहुत से मोहभाव छोड़ने बाकी हैं। तुम्हें बाहर भ्रमण के लिए जाना चाहिए।" समाज में इधर-उधर भ्रमण करना बहुत दु:खदाई होता है। इसे भोजन के लिए भिक्षा मांगनी पड़ती है और विभिन्न प्रकार के लोगों से मिलना पड़ता है जो इसे फटकारेंगे, इसका अपमान करेंगे, या लाभ उठायेंगे। इसे हर प्रकार की वस्तुओं का सामना करना पड़ सकता है। यह स्वयं को एक अभ्यासी मानेगा और दूसरों के साथ उचित संबंध रखेगा, और सदैव नैतिकगुण को संभाल कर और बढ़ाते हुए रखेगा। यह साधारण लोगों के बीच विभिन्न लाभों के लोभ से विचलित नहीं होगा। कई वर्षों बाद, यह भ्रमण करके वापस आयेगा। गुरु कहेगा : "तुम पहले ही ताओ प्राप्त कर चुके हो और साधना पूर्ण कर चुके हो। यदि तुम्हारे पास कुछ और करने के लिए नहीं है, तुम सामान बांध कर छोड़ने के लिए तैयारी कर लो। यदि अभी कुछ करना शेष है, तो तुम जा कर उस साधारण लोगों के कार्य को पूरा कर सकते हो।" कई वर्षों पश्चात, सह आत्मा वापस आती है। सह आत्मा के वापस आने पर, मुख्य आत्मा भी अचेतन अवस्था से बाहर आ जाती है, और मुख्य आत्मा जाग जाती है।

किन्तु इस व्यक्ति ने वास्तव में अभ्यास नहीं किया है। उस सह आत्मा ने यह अभ्यास किया है, इसलिए सह आत्मा गोंग प्राप्त करेगी। किन्तु मुख्य आत्मा ने भी पीड़ा सही है। अन्तत:, व्यक्ति ने अपना पूरा युवाकाल वहाँ बैठ कर बिता दिया, और एक साधारण व्यक्ति के लिए यह जीवनकाल पूर्ण हो गया। तब क्या होगा? अचेतन अवस्था से जागने के बाद, इस व्यक्ति को लगेगा कि अपने अभ्यास द्वारा उसने गोंग प्राप्त कर लिया है और दिव्य सिध्दियाँ प्राप्त कर ली हैं। यदि वह किसी रोगी का उपचार करना चाहता है या कुछ करना चाहता है, वह कर सकेगा, क्योंकि सह आत्मा उसे सन्तुष्ट करने का प्रयत्न करेगी। क्योंकि यह व्यक्ति मुख्य आत्मा है, अन्तत:, मुख्य आत्मा शरीर को नियन्त्रित करती है और निर्णय लेती है। इसके अतिरिक्त, उसने यहाँ बैठकर इतने वर्ष गुजार दिये कि उसका जीवनकाल पूर्ण हो गया है। जब इस व्यक्ति की मृत्यु होती है, सह आत्मा शरीर त्याग देती है। दोनों अपने-अपने भिन्न मार्गों पर जायेंगी। बुध्दमत के अनुसार, यह व्यक्ति अभी भी संसार के चक्र से गुजरेगा। क्योंकि उसके शरीर से एक महान ज्ञानप्राप्त व्यक्ति ने सफलतापूर्वक साधना की है, यह व्यक्ति बहुत सा सद्गुण भी प्राप्त करता है। तब क्या होगा? हो सकता है वह अपने अगले जन्म में एक उच्च पदाधिकारी बन जाए या बहुत सा धन अर्जित करे। यह केवल इस प्रकार हो सकता है। क्या उसकी साधना व्यर्थ समाप्त नहीं हुई?

इस विषय का खुलासा करने की अनुमति के लिए हमें बहुत प्रयत्न लगा है। मैंने चिर रहस्य को उजागर कर दिया है- यह रहस्यों का रहस्य था जिसे बिल्कुल उजागर नहीं किया जा सकता था। मैंने संपूर्ण इतिहास के सभी विभिन्न साधना अभ्यासों के मूल को उजागर कर दिया है। क्या मैंने नहीं कहा था कि इसमें गहन रूप से ऐतिहासिक कारण सम्मिलित हैं। ये कारण हैं। इसके बारे में सोचें : कौन सा अभ्यास या पध्दति इस प्रकार साधना अभ्यास नहीं करती? आप साधना करते हुए आते-जाते रहते हैं, किन्तु गोंग प्राप्त नहीं करते। क्या आप दु:खी नहीं हैं? तो किस का दोष है? मनुष्य इतने भ्रमित हैं कि उन्हें इसका ज्ञानोदय नहीं होता, भले ही उन्हें कैसे भी संकेत दिए जाएँ। यदि किसी वस्तु को एक ऊँचे दृष्टिकोण से समझाया जाता है, वे इसे अविश्वसनीय पाएँगे। यदि किसी वस्तु को एक निम्न दृष्टिकोण से समझाया जाता है, उन्हें इसका ज्ञानोदय नहीं हो पाता कि उच्च क्या है? यहाँ तक कि जब मैं इस प्रकार समझाता हूँ, कुछ लोग तब भी मुझसे अपने रोग ठीक कराना चाहते हैं। मैं वास्तव में नहीं जानता कि उन्हें क्या कहूँ। हम साधना अभ्यास सिखाते हैं, और हम केवल उन्हीं की देख-रेख कर सकते हैं जो ऊँचे स्तरों की ओर साधना का अभ्यास करते हैं।

हमारी अभ्यास पध्दति में, यह मुख्य चेतना है जो गोंग प्राप्त करती है। तब, क्या मुख्य चेतना गोंग प्राप्त करेगी यदि आप ऐसा कहें? इसकी अनुमति कौन देता है? यह उस प्रकार नहीं है, क्योंकि इसकी एक पूर्व आवश्यकता होनी चाहिए। हर कोई जानता है कि साधना अभ्यास में हमारी साधना पध्दति में साधारण मानव समाज को नहीं त्यागा जाता है, और न ही यह मतभेदों से बचती या दूर भागती है। इस साधारण लोगों के जटिल वातावरण में, आपका मन स्पष्ट होना चाहिए और लाभ के सामने जानबूझ कर त्याग करना चाहिए। जब आपका निजी-लाभ दूसरों द्वारा ले लिया जाता है, आप इसके लिए दूसरों की तरह द्वन्द या झगड़ा नहीं करेंगे। विभिन्न नैतिकगुण विघ्न के बीच, आप हानि सहेंगे। इस कठिन वातावरण में, आप अपनी इच्छाशक्ति को दृढ़ करेंगे और अपने नैतिकगुण में सुधार करेंगे। साधारण लोगोंं के विभिन्न बुरे विचारों के प्रभाव के बीच, आप इसके ऊपर और आगे जा सकेंगे।

आप सब इसके बारे में सोचें : क्या यह आप नहीं हैं जो जानबूझकर सहते हैं? क्या यह आपकी मुख्य आत्मा नहीं है जो त्याग करती है? जहाँ तक साधारण लोगों के बीच आपने जो खोया है, क्या आपने जानबूझकर इसे नहीं खोया है? तब यह गोंग आपका होना चाहिए, क्योंकि जो त्याग करता है, प्राप्त करता है। इसलिए, इस कारण हमारी पध्दति इस साधारण लोगों के जटिल वातावरण में साधना का अभ्यास करने से बचती नहीं है। हम साधारण लोगों के मतभेदों के बीच साधना का अभ्यास क्यों करते हैं? यह इसलिए क्योंकि हम स्वयं गोंग प्राप्त करने जा रहे हैं। मठों के भविष्य के पेशेवर अभ्यासियों के लिए, अपने साधना अभ्यास में, साधारण लोगों के बीच भ्रमण करना आवश्यक होगा।

कुछ लोगों ने पूछा है : "क्या आजकल दूसरी पध्दतियाँ भी साधारण लोगों के बीच अभ्यास नहीं करतीं?" किन्तु वे पध्दतियाँ आरोग्य और स्वास्थ्य को प्रचलित कर रही हैं। किसी ने भी वास्तव में, सार्वजनिक रूप से उच्च स्तरों की ओर पध्दतियाँ नहीं सिखाई हैं केवल उन्हें छोड़कर जो एक शिष्य को लेकर एकान्त शिक्षा देते हैं। जो सच्चे रूप से अपने शिष्यों को सिखाते हैं वे उन्हें एकान्त शिक्षा देने के लिए पहले ही ले जा चुके हैं। कई वर्षों में, किसने जनता के बीच इस बारे में बात की है? यह किसी ने नहीं किया है। हमारी अभ्यास पध्दति ने इस प्रकार शिक्षा दी है, क्योंकि हम ठीक इसी प्रकार साधना का अभ्यास करते हैं, और हम ठीक इसी प्रकार गोंग प्राप्त करते हैं। इसके साथ ही, हमारी साधना पध्दति आपकी मुख्य आत्मा को सैकड़ों और हजारों वस्तुएँ देती है जिससे आप स्वयं गोंग प्राप्त करने में वास्तव में सक्षम हो सकें। मैं कह चुका हूँ कि मैंने यह अभूतपूर्व कार्य किया है और द्वार को अधिकतम खोल दिया है। कुछ लोग मेरे इन शब्दों को समझ गए हैं, क्योंकि जो मैंने कहा है वह वास्तव में अविश्वसनीय नहीं है। एक व्यक्ति की भाँति, मेरा एक स्वभाव है : यदि मेरे पास एक गज है और मैं इसका एक इंच ही कहता हूँ, आप तब भी कह सकते हैं कि मैं बड़बोली बात कर रहा हूँ, किन्तु जो कहा गया है वह वास्तव में केवल एक छोटा भाग ही है। स्तरों में विशाल दूरियों के कारण, मैं आपको उच्च दाफा तनिक भी उजागर नहीं कर सकता।

हमारी पध्दति इस प्रकार साधना का अभ्यास करती है, जो स्वयं आपको वास्तव में गोंग प्राप्त करने के लिए योग्य बनाती है। देवलोक और पृथ्वी के आरम्भ से यह अभूतपूर्व है- आप इतिहास जांच सकते हैं। यह अच्छा है क्योंकि आप स्वयं गोंग प्राप्त करेंगे, किन्तु यह बहुत कठिन भी है। साधारण लोगों के जटिल वातावरण और इसके परस्पर नैतिकगुण संघर्षों के बीच, आप इसके ऊपर और आगे उठ पाते हैं- यह सबसे कठिन वस्तु है। यह कठिन है क्योंकि आप साधारण लोगों के बीच जानबूझकर अपने निजी लाभों का त्याग करते हैं। अपने निर्णायक निजी लाभों के बीच, क्या आप विचलित होते हैं? परस्पर मानसिक क्रीड़ाओं के बीच, क्या आप विचलित होते हैं? जब आपके मित्र या परिवारजन दु:ख उठाते हैं, क्या आप विचलित होते हैं? आप उन्हें कैसे मापेंगे? एक अभ्यासी होना इतना ही कठिन है! किसी ने मुझसे कहा : "गुरुजी, साधारण लोगों के बीच एक अच्छा व्यक्ति बनना ही बहुत है। साधना में कौन सफल हो सकता है?" यह सुनने के बाद, मुझे वास्तव में निराशाजनक लगा! मैंने उसे एक शब्द भी नहीं कहा। यहाँ हर प्रकार के नैतिकगुण हैं। जो जितना ऊँचा चाहता है उसे उतना ज्ञानोदय होता है; जिस किसी को ज्ञानोदय होता है उसे प्राप्ति होती है।

लाओ ज़ ने कहा था : "ताओ वह मार्ग है जिसका अनुसरण किया जा सके, किन्तु यह एक साधारण मार्ग नहीं है।" ताओ मूल्यवान नहीं होगा यदि इसे कोई कहीं भी जमीन पर पड़े हुए उठा ले और इसके अभ्यास में सफल हो जाए। हमारी अभ्यास पध्दति आपको मतभेदों के बीच गोंग प्राप्त करना सिखाती है। इसलिए, हमें साधारण लोगों के साथ जितना हो सके उतना मेलजोल से रहना चाहिए। भौतिक रूप से, आपको वास्तव में किसी वस्तु की हानि नहीं होने दी जाएगी। किन्तु इस भौतिक वातावरण में आपके लिए अपने नैतिकगुण को बढ़ाना आवश्यक है। इस कारण यह सुविधाजनक है। हमारी साधना पध्दति सबसे सुविधाजनक है, क्योंकि व्यक्ति इसका अभ्यास साधारण लोगों के बीच कर सकता है न कि संन्यासी बन कर। इस कारण यह सबसे कठिन भी है, क्योंकि व्यक्ति साधारण लोगों के इस सर्वाधिक जटिल वातावरण में साधना का अभ्यास करेगा। इसके अतिरिक्त, यह इस कारण सर्वोत्ताम है, क्योंकि यह व्यक्ति को स्वयं गोंग प्राप्त करने में योग्य बनाती है। यह हमारी साधना पध्दति में सबसे निर्णायक बिंदु है, और आज मैंने इसे सबके लिए उजागर कर दिया है। नि:संदेह, जब मुख्य आत्मा गोंग प्राप्त करती है, तब सह आत्मा भी इसे प्राप्त करती है। ऐसा क्यों है? जब आपके शरीर में सभी संदेश, जीवन सत्ताएँ, और कोशिकाएँ गोंग प्राप्त करती हैं, सह आत्मा भी निश्चित ही इसे प्राप्त करती है; किन्तु, किसी भी समय इसका गोंग स्तर उतना ऊँचा नहीं होगा जितना आपका। आप मालिक हैं जबकि यह फा की संरक्षक है।

यह बात करने पर, मैं यह भी कहना चाहूँगा कि साधकों के समुदाय में अनेक लोग हैं जो सदैव उच्च स्तरों की ओर अभ्यास करने के लिए प्रयत्नशील रहे हैं। उन्होंने हर जगह भ्रमण किया है और बहुत सा धन व्यय किया है। वे पूरे देश में घूम कर भी सुप्रसिध्द गुरुओं को नहीं खोज सके हैं। सुप्रसिध्द होने का अर्थ यह आवश्यक नहीं है कि वह वस्तुओं को अच्छी प्रकार से जानता हो। अन्त में, ये लोग इधर-उधर भ्रमण कर चुके होते हैं, और व्यर्थ में बहुत सा धन और प्रयत्न व्यय कर चुके होते हैं। आज हमने आपके लिए इस महान अभ्यास को सार्वजनिक कर दिया है। मैंने पहले ही इसे आपके द्वार तक पहुँचा दिया है। यह आप पर है कि आप साधना अभ्यास कर पाते हैं और सफल हो पाते हैं। यदि आप इसे कर सकते हैं, आप अपनी साधना निरन्तर रख सकते हैं। यदि आप इसे नहीं कर सकते या साधना अभ्यास नहीं कर सकते, अब से आप साधना का अभ्यास करने के बारे में भूल सकते हैं। केवल असुरों को छोड़ कर जो आप को धोखा देंगे, कोई और आपको नहीं सिखाएगा, और भविष्य में आप साधना का अभ्यास नहीं कर सकेंगे। यदि मैं आपको नहीं बचा सकता, तो कोई और भी नहीं। वास्तव में, आपको सिखाने के लिए किसी पारम्परिक फा से एक सच्चे गुरु को खोजना स्वर्ग पर चढ़ाई करने से भी कठिन है। ऐसा कोई भी नहीं है जो देख-रेख करता हो। धर्मविनाशकाल में, यहाँ तक कि सबसे ऊँचे स्तर भी कलयुग के अन्त में है। कोई भी साधारण लोगों की देख-रेख नहीं कर रहा है। यह सबसे सुविधाजनक साधना पध्दति है। इसके अतिरिक्त, इसका अभ्यास सीधे ब्रह्माण्ड की प्रकृति के अनुसार किया जाता है। यह सबसे शीघ्र, सबसे सीधा मार्ग है, और यह सीधे व्यक्ति के हृदय को लक्ष्य करता है।

दिव्य परिक्रमा

ताओ विचारधारा में, वृहत और लघु दिव्य परिक्रमा सिखायी जाती हैं। हम समझायेंगे कि "दिव्य परिक्रमा" क्या होती है? दिव्य परिक्रमा जिसका हम अक्सर उल्लेख करते हैं रेन और डू की दो शक्ति नाड़ियों7 के जोड़ने को कहा जाता है। यह दिव्य परिक्रमा एक सतही दिव्य परिक्रमा है जिसका प्रयोग केवल आरोग्य और स्वास्थ्य के लिए किया जाता है। इसे लघु दिव्य परिक्रमा कहा जाता है। दूसरी दिव्य परिक्रमा जिसे न तो "लघु दिव्य परिक्रमा" कहा जाता है न ही "महान दिव्य परिक्रमा" वह ध्यान में साधना का अभ्यास करने के लिए एक प्रकार की दिव्य परिक्रमा है। व्यक्ति के शरीर के अन्दर से आरम्भ हो कर, यह नीवान की परिधि करके अन्दर से नीचे की ओर तानत्येन तक आती है, जहाँ यह परिधि करती है और ऊपर जाती है। यह आन्तरिक धारा है। यह ध्यान में साधना अभ्यास करने के लिए सच्ची दिव्य परिक्रमा है। इस दिव्य परिक्रमा के बन जाने पर, यह एक बहुत प्रबल शक्ति प्रवाह बन जाती है जो तब एक शक्ति नाड़ी द्वारा सैकड़ों शक्ति नाड़ियों को गति में लाती है, जिससे और सभी शक्ति नाड़ियाँ खुल सकें। ताओ विचारधारा दिव्य परिक्रमा सिखाती है, किन्तु बुध्द विचारधारा नहीं। बुध्द विचारधारा क्या सिखाती है? जब शाक्यमुनि ने अपना धर्म सिखाया, उन्होंने व्यायामों का अभ्यास नहीं समझाया, और न ही उन्होंने उन्हें सिखाया। किन्तु उनके अभ्यास में भी साधना में उनके रूपान्तरण का अपना स्वरूप होता है। बुध्दमत में शक्ति नाड़ी कैसे गति करती है? यह बाई ह्ने बिंदु से आरम्भ होकर जाती है। तब सिर के ऊपर से विकसित होकर शरीर के निचले भाग में घुमावदार रूप से जाती है, और अन्त में, इस प्रणाली द्वारा यह सैकड़ों शक्ति नाड़ियों को गति में लाती है और उन्हें खोलती है।

तन्त्र विद्या में मध्य शक्ति नाड़ी का भी यही प्रयोजन होता है। किसी ने कहा है : "कोई मध्य शक्ति नाड़ी नहीं होती। तब तन्त्र विद्या इस मध्य शक्ति नाड़ी को कैसे विकसित कर सकती है?" वास्तव में, जब मानव शरीर में सभी शक्ति नाड़ियों को एक साथ जोड़ा जाए, वे संख्या में सैकड़ों या दसियों हजार होती हैं। वे ठीक रक्त की नसों की तरह आड़े और तिरछे काटती हैं, और वे रक्त की नसों से भी अधिक होती हैं; आन्तरिक अंगों के बीच कोई रक्त की नसें नहीं होती, किन्तु शक्ति नाड़ियाँ होती हैं। वे व्यक्ति के सिर से शरीर के विभिन्न भागों तक आड़ी और तिरछी जुड़ी होती हैं। कदाचित वे आरम्भ में सीधी नहीं होतीं, और उन्हें जोड़ने के लिए खोला जाता है। तब वे धीरे-धीरे फैलेंगी और एक सीधी शक्ति नाड़ी बनाएंगी। इस शक्ति नाड़ी को धुरी बना कर, यह स्वयं घूम कर अनेक सैध्दान्तिक चक्रों को समतल घुमाव में लाती है। इसका ध्येय भी शरीर की सभी शक्ति नाड़ियों को खोलना है।

हमारे फालुन दाफा के साधना अभ्यास में एक शक्ति नाड़ी द्वारा सैकड़ों शक्ति नाड़ियों को गति में लाने की प्रणाली का प्रयोग नहीं किया जाता। बिल्कुल आरम्भ से, हमारी आवश्यकता है कि सैकड़ों शक्ति नाड़ियों को खोल दिया जाए और एक साथ घुमाव में लाया जाए। एक साथ ही, हम एक बहुत ऊँचे स्तर पर अभ्यास करते हैं और निम्न स्तर की वस्तुओं का प्रयोग नहीं करते। कुछ लोगों के लिए एक शक्ति नाड़ी द्वारा सैकड़ों शक्ति नाड़ियों को खोलने में, एक पूरा जीवनकाल अपर्याप्त हो सकता है। कुछ लोगों के लिए दशकों तक साधना अभ्यास करना आवश्यक होता है, और यह बहुत कठिन होता है। कई पध्दतियों में कहा जाता है कि साधना में सफल होने के लिए एक जीवनकाल पर्याप्त नहीं है, जबकि उच्च स्तर अभ्यासों में अनेक अभ्यासी हैं जो अपने जीवन को बढ़ा सकते हैं- क्या वे जीवन के संवर्धन के बारे में बात नहीं करते? वे साधना अभ्यास के लिए अपने जीवन को बढ़ा सकते हैं, जिसमें बहुत लम्बा समय लगेगा।

लघु दिव्य परिक्रमा मूल रूप से आरोग्य और स्वास्थ्य के लिए है, जबकि महान दिव्य परिक्रमा गोंग के अभ्यास के लिए है- अर्थात जब व्यक्ति वास्तव में साधना का अभ्यास करता है। महान दिव्य परिक्रमा जिसका ताओ विचारधारा में उल्लेख होता है, इतनी प्रबलता से नहीं आती जितना हमारी, जो सैकड़ों शक्ति नाड़ियों को एक साथ खोलती है। ताओ विचारधारा में महान दिव्य परिक्रमा के घूमने से अर्थ अनेक शक्ति नाड़ियों से है जो एक बार व्यक्ति की तीन यिन और तीन येंग8 नाड़ियों से व्यक्ति के हाथों से पैरों के नीचे तलवे तक, दोनों टांगों से, बालों से होते हुए, और पूरे शरीर के ऊपर घूमती है। यह गतिमान महान दिव्य परिक्रमा है। जैसे ही महान दिव्य परिक्रमा गति में आती है, यह गोंग का अभ्यास है। इसलिए, कुछ चीगोंग गुरु महान दिव्य परिक्रमा नहीं सिखाते, क्योंकि जो वे सिखाते हैं वे केवल स्वास्थ्य और आरोग्य की वस्तुएँ हैं। कुछ लोगों ने महान दिव्य परिक्रमा की बात भी की है, किन्तु उन्होंने आपके शरीर में कुछ भी स्थापित नहीं किया है, और आप स्वयं उन्हें नहीं खोल सकते। बिना प्रणाली के स्थापित किए, व्यक्ति के मनोभाव की सहायता से वस्तुओं को सरलता से कैसे खोला जा सकता है? यह व्यायाम करने जैसा है- वह उन्हें कैसे खोल सकता है? साधना व्यक्ति के प्रयत्नों पर आधारित होती है जबकि गोंग का रूपांतरण गुरु द्वारा किया जाता है। आन्तरिक "प्रणाली" को पूरी तरह आपको दे दिये जाने के बाद ही, यह प्रभाव आ सकता है।

पूरे इतिहासकाल में ताओ विचारधारा ने मानव शरीर को एक लघु ब्रह्माण्ड माना है : यह मानती है कि ब्रह्माण्ड का बाहरी स्वरूप उतना ही बड़ा है जितना आन्तरिक, और यह कि इसका बाहरी स्वरूप वैसा ही दिखाई पड़ता है जैसा आन्तरिक। यह विचार अविश्वसनीय जान पड़ता है और सरलता से समझ नहीं आता। यह ब्रह्माण्ड इतना बड़ा है- इसकी तुलना एक मानव शरीर से कैसे हो सकती है? हम यह बात सामने ला रहे हैं : हमारी वर्तमान भौतिकी में पदार्थ के तत्वों पर शोध होता है- अणुओं से परमाणुओं, इलेक्ट्रॉन, प्रोटोन, और क्वार्क से न्यूट्रिनो तक, किन्तु इससे और नीचे क्या आकार होता है? एक सूक्ष्मदर्शी इसे उस बिंदु पर नहीं जांच सकती, तब इसके और नीचे अत्यन्त सूक्ष्म कण कैसा होगा? यह अज्ञात है। वास्तव में, जो हमारी भौतिकी आज जानती है वह ब्रह्माण्ड के सूक्ष्मतम कण से कहीं दूर है। यदि किसी के पास यह भौतिक शरीर नहीं है, उसकी ऑंखें वस्तुओं को वृहत रूप में देख सकेंगी और सूक्ष्म स्तर को देखेंगी। जितना ऊँचा व्यक्ति का स्तर होता है, उतना ही अधिक सूक्ष्म स्तर वह देख सकता है।

अपने स्तर पर, शाक्यमुनि ने तीन हजार विश्वों का सिध्दान्त प्रकाश में लाया था, जिसके अनुसार इस आकाश गंगा में ऐसे लोग हैं जिनके भौतिक शरीर हमारी मानवजाति जैसे है। उन्होंने यह भी बताया कि रेत के एक कण में तीन हजार विश्व समाहित होते हैं, और यह हमारी आधुनिक भौतिकी की समझ के अनुरूप है। इलेक्ट्रॉन के नाभिक के चारों ओर घूमने और पृथ्वी के सूर्य के चारों ओर घूमने में क्या अन्तर है? इसलिए, शाक्यमुनि ने कहा था कि सूक्ष्म स्तर पर, रेत के एक कण में तीन हजार विश्व होते हैं। यह ठीक एक विश्व की तरह है जिसमें जीवन और पदार्थ समाहित होते हैं। यदि यह सत्य है, इसके बारे में सोचें : क्या उस रेत के कण के विश्व में रेत है? क्या उस रेत के कण के रेत में तीन हजार विश्व हैं? तब क्या रेत के भी रेत के तीन हजार विश्वों में रेत है? यदि यह खोज नीचे की ओर चलती रहे, तो यह अनन्त रहेगी। इसलिए, तथागत के स्तर पर भी, शाक्यमुनि ने यह वक्तव्य कहा था : "यह वृहत है, जिसका बाह्य नहीं है, और यह सूक्ष्म है, जिसका आन्तरिक नहीं है।" यह इतना वृहत है कि वे ब्रह्माण्ड की परिधि को नहीं देख सके, और इतना सूक्ष्म है कि वे पदार्थ के मूल से सूक्ष्मतम कण का पता नहीं लगा सके।

एक चीगोंग गुरु ने कहा था : "एक रोम छिद्र में एक नगर है जिसमें रेलगाड़ियाँ और कारें चलती हैं।" यह बहुत अविश्वसनीय जान पड़ता है, किन्तु हमें यह वक्तव्य तब अविश्वसनीय नहीं लगता यदि हम इसे वास्तव में वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझें और जानें। दूसरे दिन जब मैंने दिव्य नेत्र के खुलने की बात की, दिव्य नेत्र के खुलने के दौरान कई लोगों को यह परिस्थिति दिखाई दी : वे अपने माथे में एक सुरंग में से भागे जा रहे थे जैसे वे उसके अन्त तक पहुँच ही न सकें। उनके अभ्यास के प्रत्येक दिन, उन्हें महसूस हुआ कि वे इस बड़े मार्ग पर भागे जा रहे हों, जहाँ दोनों ओर पर्वत और नदियाँ हैं। भागते समय, वे नगरों से गुजरे और उन्हें बहुत से लोग दिखाई पड़े, और उन्होंने सोचा कि यह एक भ्रम है। यह क्या है? जो देखा गया वह बहुत स्पष्ट है और कोई भ्रम नहीं है। मैंने कहा है कि व्यक्ति का शरीर सूक्ष्म स्तर पर वास्तव में इतना बड़ा है, यह कोई भ्रम नहीं है। यह इसलिए क्योंकि ताओ विचारधारा ने सदैव मानव शरीर को एक ब्रह्माण्ड माना है। यदि यह वास्तव में एक ब्रह्माण्ड है, माथे से पिनियल ग्रन्थि तक की दूरी 108 हजार ली से अधिक होगी। आप बाहर की ओर जा सकते हैं, किन्तु यह एक बहुत सुदूर दूरी है।

यदि साधना अभ्यास के दौरान महान दिव्य परिक्रमा पूरी तरह खुल जाती है, इससे अभ्यासी में एक दिव्य सिध्दि आएगी। कौन सी दिव्य सिध्दि? आप जानते हैं कि महान दिव्य परिक्रमा को "मध्य दिव्य परिक्रमा," "च्येन-कुन 9 आवर्तन," या "ह-च 10 आवर्तन" भी कहा जाता है। एक बहुत निम्न स्तर पर, महान दिव्य परिक्रमा का आवर्तन एक शक्ति धारा को उत्पन्न करेगा, जो निरन्तर और सघन होती जाएगी, और उच्च स्तरों की ओर रूपांतरित होते हुए एक बड़ी, उच्च घनत्व की शक्ति परिधि बन जाएगी। इस शक्ति परिधि की आवर्तन की गति होगी। इसके आवर्तन में, हम, एक बहुत निम्न स्तर के दिव्य नेत्र द्वारा, पाते हैं कि यह व्यक्ति के शरीर की ची को स्थानान्तरित कर सकती है। हृदय से ची आंतों में जा सकती है, और यकृत से ची उदर में जा सकती है.....। सूक्ष्म स्तर पर हम देख सकते हैं यह जो स्थानान्तरित करती है वह बहुत बड़ी वस्तु है। यदि इस शक्ति परिधि को व्यक्ति के शरीर के बाहर छोड़ दिया जाता है, यह दूर-स्थानान्तरण की दिव्य सिध्दि है। जिसके पास बहुत प्रबल गोंग होता है वह बहुत बड़ी वस्तु को स्थानान्तरित कर सकता है, और इसे महान स्थानान्तरण कहा जाता है। जिसका गोंग दुर्बल होता है वह किसी बहुत छोटी वस्तु को स्थानान्तरित कर सकता है, और इसे लघु स्थानान्तरण कहा जाता है। ये दूर-स्थानान्तरण के प्रकार और उनकी उत्पत्ति हैं।

महान दिव्य परिक्रमा में सीधे गोंग का अभ्यास सम्मिलित होता है। इस प्रकार, इसके द्वारा विभिन्न परिस्थितियाँ और गोंग के प्रकार सामने आते हैं। यह हमारे सामने एक बहुत विशिष्ट परिस्थिति भी लाएगी। यह परिस्थिति क्या है? हर किसी ने प्राचीन पुस्तकों जैसे देवताओं की एक जीवनकथा, तान-जिंग] ताओ जांग, या शिंगमिंग गुइजी में यह वाक्य "दिन के उजाले में उड़ना" (बाइरी फेइशंग) पढ़ा होगा। इसका अर्थ है कि कोई व्यक्ति दिन के उजाले में उड़ सकता है। वास्तव में, मैं आपको बताना चाहूँगा कि जैसे ही महान दिव्य परिक्रमा खुलती है व्यक्ति उड़ सकता है- यह इतना सरल है। कुछ लोग सोचेंगे कि ऐसे बहुत से लोग होंगे जिनके इतने वर्षों के अभ्यास के बाद महान दिव्य परिक्रमा खुल चुके होंगे। मैं यहाँ तक कहूँगा कि यह अविश्वसनीय नहीं होगा यदि दसियों हजार व्यक्ति इस स्तर पर पहुँच चुके हों, क्योंकि साधना अभ्यास में महान दिव्य परिक्रमा एक आरम्भिक स्तर है।

तब, किसी ने लोगों को उठते हुए या उन्हें हवा में उड़ते हुए क्यों नहीं देखा? साधारण मानव समाज की दशा में विघ्न नहीं डाला जा सकता, और न ही साधारण मानव समाज को अकारण अवरूध्द किया जा सकता है या बदला जा सकता है। हर किसी को हवा में उड़ने की अनुमति कैसे दी जा सकती है? क्या वह एक साधारण मानव समाज कहलाएगा? यह एक प्राथमिक पहलू है। दूसरे दृष्टिकोण से, मनुष्य साधारण लोगों के बीच मनुष्य बने रहने के लिए नहीं जीते, बल्कि अपनी मूल, सच्ची प्रकृति की ओर लौटने के लिए जीते हैं। इसलिए इसके लिए ज्ञानोदय होने का विषय है। यदि कोई देखता है कि कई लोग वास्तव में उड़ सकते हैं, वह भी साधना अभ्यास करना चाहेगा, और वहाँ ज्ञानोदय का विषय नहीं रहेगा। इसलिए, यदि आप साधना द्वारा उड़ पाते हैं, आपको इसे अकारण औरों को दिखाना या प्रदर्शित नहीं करना चाहिए, क्योंकि उन्हें भी साधना का अभ्यास करने की आवश्यकता है। परिणामस्वरूप, आपकी महान दिव्य परिक्रमा के खुल जाने पर, यदि आपकी उंगली का सिरा, या पैर की उंगली का सिरा, या शरीर का कोई भाग बंधित कर दिया जाता है, आप उड़ नहीं सकेंगे।

जब हमारी महान दिव्य परिक्रमा खुलने वाली होती है, एक परिस्थिति आएगी जिसमें कुछ लोग ध्यान में बैठते समय आगे की ओर झुक जाएंगे। क्योंकि व्यक्ति के पीछे का प्रवाह अच्छी प्रकार से खुला है, उसके पीछे का भाग बहुत हल्का महसूस होगा जबकि शरीर के आगे का भाग भारी महसूस होगा। कुछ लोग पीछे की ओर झुक जाते हैं और महसूस करते हैं कि उनके पीछे का भाग भारी है जबकि उनके शरीर के आगे का भाग हल्का महसूस होता है। यदि आपका पूरा शरीर अच्छी तरह खुल गया है, आपको महसूस होगा जैसे आप ऊपर उठ रहे हों, जैसे जमीन से ऊपर उड़ रहे हों। जब आप वास्तव में उड़ सकेंगे, आपको उड़ने की अनुमति नहीं होगी- किन्तु यह अटल नहीं है। जिनकी दिव्य सिध्दियाँ विकसित होती हैं वे अक्सर दोनों सिरों पर होते हैं : बच्चों में मोहभाव नहीं होते, और न ही वृध्द लोगों में- विशेषकर वृध्द महिलाओं में। वे सरलता से इस सिध्दि को विकसित और संरक्षित रख सकते हैं। पुरुषों में, विशेषकर युवा पुरुषों में, जैसे ही उनके पास कोई सिध्दि आती है, वे दिखावे की मानसिकता से ऊपर नहीं उठ पाते। उसी समय, वे इसे साधारण लोगों के बीच प्रतिद्वन्द के लिए भी प्रयोग कर सकते हैं। इस प्रकार इसके बने रहने की अनुमति नहीं है और अभ्यास के दौरान जैसे ही यह विकसित होगी इसे बंधित कर दिया जाएगा। यदि शरीर का एक भाग बंधित किया जाता है, यह व्यक्ति उड़ नहीं सकेगा। कहने का अर्थ यह नहीं है कि आपके लिए इस दशा का होना पूर्णत: निषेध होगा। आपको इसे प्रयोग करने की अनुमति हो सकती है, और कुछ लोग इसे रख पाते हैं।

जहाँ कहीं मैं व्याख्यान देता हूँ ये परिस्थितियाँ होती हैं। जब मैंने शानडोंग में एक कक्षा को पढ़ाया, वहाँ बीजिंग और जीनान11 के अभ्यासी थे। किसी ने पूछा : "गुरुजी, मेरे साथ क्या हो रहा है? जब मैं चलता हूँ, मुझे लगता है जैसे मैं जमीन छोड़ रहा हूँ। घर में सोते समय भी मुझे ऐसा महसूस होता है जैसे मैं उड़ रहा हूँ। यहाँ तक कि चादरें भी गुब्बारे की तरह उड़ने लगती हैं।" जब मैंने ग्वे-यांग12 में एक कक्षा ली, वहाँ ग्वे-जू से एक वृध्द अभ्यासी आई थी जो एक वृध्द महिला थी। उसके कमरे में दो बिस्तर थे, जिसमें एक बिस्तर एक दीवार के साथ था और दूसरा बिस्तर दूसरी दीवार के साथ। जब वह बिस्तर पर ध्यान में बैठी थी, उसे महसूस हुआ जैसे वह उड़ रही हो, और जब उसने अपनी ऑंखें खोलीं उसने स्वयं को दूसरे बिस्तर पर स्थानान्तरित पाया। उसने मन में सोचा, "मुझे अपने बिस्तर पर लौट जाना चाहिए," और वह उड़ कर वापस पहुँच गई।

चिंगदाओ13 में एक अभ्यासी था जो लंच की छुट्टी के दौरान, जब उसके दफ्तर में आसपास कोई नहीं था, एक बिस्तर पर ध्यान में बैठा। जैसे ही वह वहाँ बैठा, वह ऊपर उठा और तेजी से एक मीटर तक ऊपर-नीचे उठने लगा। ऊपर उठने के बाद वह नीचे आ जाता, और ऐसा होता रहा। बिस्तर की चादर भी उछल कर जमीन पर गिर गई। वह थोड़ा बहुत जोश में था और कुछ डर रहा था। यह ऊपर-नीचे होने का क्रम पूरे लंच के समय में चलता रहा। अन्तत:, दफ्तर की घंटी बजी, और उसने मन में सोचा : "मुझे यह दूसरों को नहीं देखने देना चाहिए। वे आश्चर्य करेंगे कि क्या हो रहा है? मुझे तुरन्त रूक जाना चाहिए।" वह रूक गया। इसलिए वृध्द लोग अपना आचरण उचित प्रकार रख सकते हैं। यदि यह किसी युवा व्यक्ति के साथ हुआ होता, जब दफ्तर की घंटी बजती वह सोचता : "तुम सब आ कर मुझे उड़ते हुए देखो।" यहीं पर व्यक्ति अपनी दिखावे की मानसिकता को सरलता से नियन्त्रित नहीं कर पाता : "देखा मैंने कितना अच्छा अभ्यास किया है- मैं उड़ सकता हूँ।" जैसे ही व्यक्ति इसका दिखावा करता है, सिध्दि चली जाएगी, क्योंकि इसके इस प्रकार बने रहने की अनुमति नहीं है। हर जगह अभ्यासियों के बीच ऐसी बहुत सी घटनाएँ हैं।

हमारी आवश्यकता है कि सैकड़ों शक्ति नाड़ियाँ बिल्कुल आरम्भ से ही खोल दी जाएं। इस दिन तक, हमारे अस्सी से नब्बे प्रतिशत अभ्यासी उस अवस्था तक पहुँच चुके हैं जहाँ उनके शरीर बहुत हल्के हैं और रोगों से मुक्त हैं। उसी समय, हम कह चुके हैं कि इस कक्षा में आपको न केवल इस अवस्था में धकेल दिया जाता है जहाँ आपका शरीर पूरी तरह शुध्द हो चुका है, बल्कि आपके शरीर में बहुत सी वस्तुएँ भी स्थापित की जा चुकी हैं जिससे इस कक्षा में आप गोंग विकसित कर सकें। यह उसी प्रकार है जैसे मैं आपको ऊपर उठाऊँ और तब आगे की ओर बढ़ा दूँ। मैं कक्षा में सभी को फा पढ़ा रहा हूँ, और सभी का नैतिकगुण भी निरन्तर बदल रहा है। इस सभाग्रह से बाहर जाने के बाद, आप में से कई लोग भिन्न व्यक्ति की तरह महसूस करेंगे, और आपका दृष्टिकोण निश्चित ही बदलेगा। आप जानेंगे कि भविष्य में अपना आचरण कैसा रखें, और आप इतने भ्रमित नहीं रहेंगे। यह निश्चित ही इस प्रकार होगा। इसलिए, आपका नैतिकगुण पहले ही बढ़ने लगा है।

महान दिव्य परिक्रमा की बात की जाए तो, यद्यपि आपको उड़ने की अनुमति नहीं है, आपको महसूस होगा जैसे आपका शरीर हल्का हो गया हो, जैसे आप हवा पर चल रहे हों। पहले आप कुछ कदम चलने के बाद थक जाते थे, किन्तु अब यह बहुत सरल है भले ही आप कितना भी चलें। साइकिल चलाते समय आपको महसूस होगा जैसे कोई घकेल रहा हो, और सीढ़ियाँ चढ़ते समय आप नहीं थकेंगे- भले ही वहाँ कितने भी तल हों। यह निश्चित ही इस प्रकार होगा। मैं ऐसा व्यक्ति हूँ जो वह नहीं कहेगा जो वह नहीं कहना चाहता, किन्तु जो मैं कहता हूँ सत्य होना चाहिए। विशेषकर इस परिस्थिति में, यदि मैं फा को सिखाने में सच्चाई नहीं बताता, यदि मैं अविश्वसनीय वक्तव्य देता हूँ, या मैं इधर-उधर की और अकारण बात करता हूँ, तो मैं एक दुष्ट फा सिखा रहा हूँ। मेरे लिए इस प्रकार की वस्तु करना सरल नहीं है, क्योंकि पूरा ब्रह्माण्ड देख रहा है। यह अनुमति नहीं है कि कोई भटक जाए।

एक साधारण व्यक्ति केवल इस महान दिव्य परिक्रमा को जानेगा, और यह समुचित होगा। वास्तव में, यह समुचित नहीं है। क्योंकि शरीर को पूरी तरह उच्च शक्ति पदार्थ से जितना शीघ्र हो सके परिवर्तित और रूपान्तरित करने के लिए, एक और दिव्य परिक्रमा होनी चाहिए जो आपके शरीर में सभी शक्ति नाड़ियों को गति में लाए। इसे "माओयो 14 दिव्य परिक्रमा" कहा जाता है, और इसके बारे में शायद बहुत कम लोगों को जानकारी है। इस शब्द का कभी-कभार पुस्तकों में उल्लेख आता है, किन्तु किसी ने आपको इसे समझाया या बताया नहीं है। इसकी केवल एक सिध्दान्त के रूप में चर्चा की जाती है, क्योंकि यह रहस्यों का रहस्य है। हम इसे पूर्णरूप से यहाँ आपको उजागर करेंगे। यह बाइह्ने बिंदु (या ह्नेयिन बिंदु से भी) आरम्भ हो सकती है, और यह बाहर आकर यिन और येंग के बीच की परिधि रेखा के साथ चलती है। यह तब कान से नीचे आकर कन्धे तक आती है, प्रत्येक अंगुली के साथ चलते हुए, आपके शरीर के किनारे से, और तब आपके पैर के तलवे तक नीचे आती है। तब यह जांघ के अन्दर के भाग से ऊपर की ओर आती है और दूसरी जांघ के अन्दर के भाग से नीचे जाती है, आपके दूसरे पैर के तलवे से निकलते हुए और आपके शरीर के दूसरे भाग से ऊपर आती है। यह दोबारा प्रत्येक अंगुली के साथ चलती है और आपके सिर के ऊपर तक पहुँचती है, यह एक आवर्तन पूर्ण होता है। यह माओयो दिव्य परिक्रमा है। दूसरे इसके बारे में एक पुस्तक लिख सकते हैं, और मैंने इसकी व्याख्या कुछ ही शब्दों में कर दी। मैं सोचता हूँ कि इसे एक दिव्य रहस्य नहीं मानना चाहिए, किन्तु और इन वस्तुओं को बहुत अनमोल मानते हैं और अपने शिष्यों को सच्चे रूप से सिखाने के अलावा उनकी चर्चा भी नहीं करते। यद्यपि मैंने इसे उजागर कर दिया है, आपमें से किसी को भी अभ्यास में इसे निर्देशित या नियन्त्रित करने के लिए मनोभाव का प्रयोग नहीं करना चाहिए। यदि आप करते हैं, आप हमारे फालुन दाफा का अभ्यास नहीं कर रहे हैं। उच्च स्तरों की ओर सच्चा अभ्यास वूवेई की अवस्था में होता है और किसी भी मानसिक क्रिया से मुक्त होता है। आपके शरीर में सभी कुछ पूर्वनिर्मित स्थापित है। वे स्वयं सुचारू होते हैं, और ये आन्तरिक प्रणालियाँ आपका संवर्धन करती हैं; समय आने पर वे स्वयं आवर्तन करेंगी। एक दिन अभ्यास करते समय हो सकता है आपका सिर एक ओर से दूसरी ओर झूमेगा। यदि यह इस ओर झूमता है, यह इस ओर आवर्तन कर रही है। यदि आपका सिर दूसरी ओर झूमता है, यह उस ओर आवर्तन कर रही है। यह दोनों ओर आवर्तन करती है।

जब महान और लघु परिक्रमाओं को खोल दिया जाता है, व्यक्ति का सिर ध्यान में बैठते समय आगे की ओर हिलेगा, और यह शक्ति के गुजरने का सूचक है। वैसा ही फालुन दिव्य परिक्रमा के लिए सत्य है जिसका हम अभ्यास करते हैं; हम केवल इसका इस प्रकार अभ्यास करते हैं। वास्तव में, जब आप अभ्यास नहीं करते, यह स्वयं आवर्तन करती है। यह निरन्तर सदा के लिए घूमती रहेगी; जब आप अभ्यास करते हैं, आप प्रणालियों को सुदृढ़ करते हैं। क्या हमने फा द्वारा अभ्यासियों के संवर्धन की बात नहीं की है? साधारणत:, आप पायेंगे कि आपकी दिव्य परिक्रमा सदैव आवर्तन करती है। यद्यपि आप अभ्यास नहीं कर रहे हैं, आपके शरीर के बाहर स्थापित शक्ति प्रणालियों की यह परत, जो बड़ी बाह्य नाड़ियों की परत है, आपके शरीर को अभ्यास में चला रही होती है- यह सब स्वचालित है। यह विपरीत दिशा में भी घूम सकती है, क्योंकि यह दोनों ओर घूमती है और निरन्तर आपकी शक्ति नाड़ियों को खोलती है।

तब दिव्य परिक्रमा को खोलने का क्या ध्येय है? दिव्य परिक्रमा को खोलना भर अभ्यास का ध्येय नहीं है। यदि आपकी दिव्य परिक्रमा खुल भी जाए, मैं कहूँगा यह तब भी कुछ नहीं है। यदि व्यक्ति की साधना बढ़ती है, दिव्य परिक्रमा की पध्दति द्वारा व्यक्ति एक शक्ति नाड़ी द्वारा सैकड़ों शक्ति नाड़ियों को खोलने का ध्येय बनाता है, और इस प्रकार वह शरीर की सभी शक्ति नाड़ियों को खोल सकता है। हमने पहले ही ऐसा करना आरम्भ कर दिया है। और अभ्यास द्वारा, व्यक्ति महान दिव्य परिक्रमा के आवर्तन में पायेगा कि शक्ति नाड़ियाँ एक अंगुली की भाँति बहुत चोड़ी हो जाएंगी और अन्दर बहुत फैल जाएंगी। क्योंकि शक्ति भी बहुत प्रबल हो गयी है, शक्ति प्रवाह के बन जाने पर, यह बहुत चौड़ी और उज्जवल बन जाएगी। यह अब भी कुछ नहीं है। अभ्यास कब समुचित अच्छा कहलाएगा? व्यक्ति की सैकड़ों शक्ति नाड़ियाँ निरन्तर चौड़ी होती जानी चाहिएँ, और शक्ति प्रबल और उज्जवल होती जानी चाहिए। अन्त में, हजारों शक्ति नाड़ियाँ एक साथ जुड़ जाएंगी और शरीर को बिना किसी शक्ति नाड़ियों या एक्यूपंक्चर बिंदुओं वाले शरीर में परिवर्तित कर देंगी; वे एक साथ जुड़ कर एक पूर्ण शरीर बना देंगी। यह शक्ति नाड़ियों को खोलने का उच्चतम प्रयोजन है। ध्येय है मानव शरीर को पूरी तरह उच्च शक्ति पदार्थ से रूपान्तरित करना।

इस बिंदु पर, व्यक्ति का शरीर मूलत: उच्च शक्ति पदार्थ द्वारा रूपांतरित हो चुका होगा। दूसरे शब्दों में, वह त्रिलोक-फा के उच्चतम स्तर पर पहुँच चुका है। मानव भौतिक शरीर उच्चतम सीमा तक सवंर्धित हो चुका होगा। इस समय, व्यक्ति को दूसरी अवस्था का अनुभव होगा। किस प्रकार की अवस्था? वह व्यक्ति बहुत समृध्द गोंग विकसित कर चुका होगा। एक साधारण व्यक्ति के शरीर को सवंर्धित करने में या त्रिलोक-फा साधना के दौरान, समस्त मानव दिव्य सिध्दियाँ और सभी वस्तुएँ विकसित होंगी। हालांकि, साधारण लोगों के बीच अभ्यास करते हुए, उनमें से अधिकांश बंधित कर दी जाती हैं। इसके अतिरिक्त, व्यक्ति का गोंग स्तम्भ बहुत ऊँचा हो जाएगा। सामर्थ्यवान गोंग द्वारा गोंग के सभी स्वरूप सुदृढ़ किए जाएँगे, जो बहुत प्रबल होंगे। किन्तु वे केवल हमारे इस आयाम में कार्य कर सकते हैं, और दूसरे आयामों में कार्य नहीं कर सकते क्योंकि वे हमारे साधारण मानव शरीरों द्वारा सवंर्धित दिव्य सिध्दियाँ हैं। तब भी, वे बहुतायात में होंगी। विभिन्न आयामों में, और शरीर के विभिन्न आयामों में स्वरूपों के दृष्टिकोण से, वहाँ बहुत से बदलाव आएँगे। आयामों के प्रत्येक स्तर पर जो वस्तुएँ यह शरीर धारण करेगा वे बहुतायात में होंगी और बहुत भयावह दिखाई पड़ेंगी। कुछ लोगों की उनके पूरे शरीराें पर ऑंखें होंगी, और उनके शरीर के सभी रोम छिद्र ऑंखें बन जाएँगे। इस व्यक्ति के संपूर्ण आयाम क्षेत्र में ऑंखें होंगी। क्योंकि यह बुध्द विचारधारा का गोंग है, कुछ लोग अपने पूरे शरीरों पर बौध्दिसत्व या बुध्द की छवि धारण करेंगे। सभी प्रकार के गोंग बहुत सघन अवस्था में पहुँच चुके होंगे।

इस समय, एक अवस्था जिसे "सिर के ऊपर तीन पुष्प एकत्रित होना" कहा जाता है होगी। यह एक बहुत स्पष्ट अवस्था है जो दर्शनीय है। एक निम्न स्तर के दिव्य नेत्र द्वारा भी इसे देखा जा सकता है। व्यक्ति के सिर के ऊपर तीन पुष्प होंगे। एक कमल पुष्प है, किन्तु यह हमारे भौतिक आयाम का कमल पुष्प नहीं है। दो और पुष्प भी दूसरे आयाम से हैं और अत्यधिक सुन्दर हैं। तीनों पुष्प बारी-बारी से व्यक्ति के सिर के ऊपर आवर्तन करते हैं। वे घड़ी की दिशा या उसकी विपरीत दिशा में घूमते हैं, व प्रत्येक पुष्प स्वयं भी घूम सकता है। प्रत्येक पुष्प के पास एक बड़ा स्तम्भ होगा जो पुष्प के व्यास जितना चौड़ा होगा। ये तीन बड़े स्तम्भ निकल कर आकाश के ऊपर तक पहुँचेंगे, किन्तु वे गोंग स्तम्भ नहीं हैं- वे केवल इस अवस्था में हैं और अत्यन्त आश्चर्यजनक हैं। यदि आप उन्हें देख सकें, आप भी स्तब्ध रह जाएँगे। जब व्यक्ति की साधना इस अवस्था तक पहुँचती है, व्यक्ति का शरीर श्वेत और शुध्द होगा, और त्वचा स्वच्छ और कोमल होगी। इस बिंदु पर, व्यक्ति त्रिलोक-फा साधना के उच्चतम स्वरूप पर पहुँच चुका होगा, किन्तु यह अन्तिम ध्येय नहीं है। व्यक्ति को अब भी निरन्तर साधना अभ्यास करते रहने और आगे बढ़ने की आवश्यकता है।

जैसे व्यक्ति आगे बढ़ता है वह त्रिलोक-फा और पर-त्रिलोक-फा के बीच के स्तर में प्रवेश करता है, जिसे शुध्द श्वेत शरीर की अवस्था कहा जाता है (इसे "रत्न श्वेत शरीर" भी कहा जाता है)। जब भौतिक शरीर की साधना त्रिलोक-फा के उच्चतम स्वरूप पर पहुँच जाती है, यह केवल यह है कि मानव भौतिक शरीर उच्चतम स्वरूप में रूपान्तरित हो चुका है। जब पूरा शरीर वास्तव में इस स्वरूप में होता है, यह पूरी तरह उच्च शक्ति पदार्थ से बना होता है। इसे शुध्द श्वेत शरीर क्यों कहा जाता है? यह इसलिए क्योंकि यह शरीर पहले ही उच्चतम स्तर की शुध्दता तक पहुँच गया है। जब इसे दिव्य नेत्र द्वारा देखा जाता है, पूरा शरीर पारदर्शी होता है- एक पारदर्शी शीशे की भाँति। जब आप इसे देखते हैं वहाँ कुछ नहीं होता, यह ऐसी अवस्था दर्शाएगा। सरल शब्दों में, यह शरीर पहले ही एक बुध्द शरीर है। यह इसलिए क्योंकि उच्च शक्ति पदार्थ से निर्मित शरीर पहले ही हमारे भौतिक शरीरों से भिन्न है। इस बिंदु पर, सभी दिव्य सिध्दियाँ और अलौकिक योग्यताएँ तुरन्त छोड़ दी जाएँगी। उन्हें एक बहुत गहन आयाम में रख दिया जाएगा, क्योंकि वे व्यर्थ हैं और किसी कार्य के लिए उपयोगी नहीं होंगी। भविष्य में एक दिन जब आप साधना में सफल होते हैं, आप पीछे मुड़ कर अपनी साधना अभ्यास की यात्रा की समीक्षा उन्हें निकाल कर देख सकते हैं। इस समय, केवल दो वस्तुएँ शेष रहेंगी : गोंग स्तम्भ अब भी रहेगा, और संवर्धित अमर शिशु बहुत बड़ा हो चुका होगा। किन्तु दोनों एक बहुत गहरे आयाम में होते हैं और साधारण स्तर के दिव्य नेत्र वाले किसी व्यक्ति द्वारा नहीं देखे जा सकते। जो देखा जा सकता है वह यह कि इस व्यक्ति का शरीर पारदर्शी है।

क्योंकि शुध्द श्वेत शरीर की अवस्था केवल एक माध्यमिक स्तर है, आगे के साधना अभ्यास द्वारा व्यक्ति वास्तव में पर-त्रिलोक-फा साधना आरम्भ करेगा, जिसे बुध्द शरीर की साधना भी कहा जाता है। संपूर्ण शरीर गोंग से बना होगा। अब तक व्यक्ति का नैतिकगुण स्थिर हो चुका होगा। वह साधना अभ्यास का आरम्भ एक नए सिरे से करेगा और दिव्य सिध्दियाँ पूर्णत: दोबारा विकसित करेगा, और उन्हें अब "दिव्य सिध्दियाँ" नहीं कहना चाहिए। उन्हें "बुध्द फा की दिव्य शक्तियाँ" कहना चाहिए, क्योंकि वे सभी आयामों में अपनी असीमित शक्ति के साथ कार्यशील हो सकती हैं। जैसे आप भविष्य में अपना साधना अभ्यास जारी रखेंगे, आप उच्च स्तरों की वस्तुएँ, साधना का अभ्यास कैसे किया जाए, और साधना अभ्यास के स्वरूप स्वयं जान जायेंगे ।

उत्साह का मोहभाव

मैं एक विषय के बारे में बताऊँगा जो उत्साह के मोहभाव से संबंधित है। अनेक लोगों ने बहुत लम्बे समय तक चींगोंग का अभ्यास किया है। ऐसे भी लोग हैं जिन्होंने इसका कभी अभ्यास नहीं किया, किन्तु सत्य और मानव जीवन के अर्थ की खोज और चिन्तन किया है। एक बार हमारे फालुन दाफा को सीखने पर, वे तुरन्त जीवन के अनेक प्रश्नों को समझ जाते हैं जो वे समझना चाहते थे किन्तु उत्तार नहीं दे पाते थे। कदाचित उनके मन का उत्थान होने के साथ, वे बहुत उत्साहित हो जाएंगे- यह निश्चित है। मैं जानता हूँ कि एक सच्चा अभ्यासी इसका वजन जानेगा और हृदय से आभार करेगा। किन्तु यह समस्या अक्सर आती है : मानवीय उत्तोजना के कारण, व्यक्ति अनावश्यक उत्साह उत्पन्न कर लेगा। यह व्यक्ति के बर्ताव को, कार्य करने के तरीके में, साधारण मानव समाज में दूसरों के साथ मेल-जोल में, या साधारण मानव समाज के वातावरण में, असाधारण कर देता है। मैं कहूँगा कि यह अस्वीकार्य है।

हमारी पध्दति में अधिकांश लोग साधारण मानव समाज में साधना अभ्यास करेंगे, इसलिए आपको साधारण मानव समाज से स्वयं को दूर नहीं कर लेना चाहिए और आपको एक स्पष्ट मन से साधना का अभ्यास करना चाहिए। एक-दूसरे के बीच संबंध सामान्य बने रहने चाहिए। नि:संदेह, आपका एक बहुत ऊँचा नैतिकगुण स्तर और एक उचित मन है। आप अपने नैतिकगुण और अपने स्तर में सुधार करेंगे; आप बुरे कार्य नहीं करते और केवल अच्छे कार्य करते हैं- ये केवल इसी प्रकार दिखाई देते हैं। कुछ लोग स्वयं इस प्रकार बर्ताव करते हैं जैसे या तो वे मानसिक रूप से असामान्य हैं या उन्होंने इस सांसारिक जगत को बहुत देख लिया है। वे वैसी वस्तुएँ कहते हैं जो और लोग नहीं समझ सकते। और लोग कहेंगे : "ऐसा कैसे है कि जो व्यक्ति फालुन दाफा सीखता है इस प्रकार हो जाता है? ऐसा लगता है जैसे उसे कोई मानसिक समस्या हो।" वास्तव में, ऐसा नहीं है। वह केवल अति उत्साहित है और इसलिए बिना सामान्य बुध्दि के सनकी जान पड़ता है। इसके बारे में सब सोचें : आपका इस प्रकार का बर्ताव करना भी अनुचित है, और आप एक दूसरी सीमा तक चले गए हैं- जो दोबारा एक मोहभाव है। आपको इसे छोड़ देना चाहिए और साधारण मानव समाज में और सब लोगों की तरह सामान्य रूप से रहते हुए साधना का अभ्यास करना चाहिए। यदि साधारण लोगों के बीच दूसरे लोग आपको सनकी पाते हैं, वे आपके साथ संबंध नहीं रखेंगे और आपसे दूरी बना कर रखेंगे। कोई भी आपको नैतिकगुण में सुधार करने के अवसर उपलब्ध नहीं करेगा, न ही आपको एक सामान्य व्यक्ति की तरह मानेगा- मैं कहूँगा कि यह उचित नहीं है! इसलिए, सभी को इस विषय पर अवश्य ध्यान देना चाहिए और अपना बर्ताव उचित रखना चाहिए।

हमारा अभ्यास साधारण पध्दतियों की तरह नहीं है जो व्यक्ति को भ्रमित, अचेत अवस्था में, या सनकी बना देती हैं। हमारे अभ्यास में आवश्यक है कि आप पूरी जागरूकता के साथ स्वयं साधना करें। कोई हमेशा कहता है : "गुरुजी, जैसे ही मैं अपनी ऑंखें बंद करता हूँ मेरा शरीर झूमने लगता है।" मैं कहूँगा कि यह इस प्रकार होना आवश्यक नहीं है। आपने पहले ही अपनी मुख्य चेतना को छोड़ने की आदत बना ली है। जैसे ही आप अपनी ऑंखें बंद करते हैं आप मुख्य चेतना को शिथिल कर देते हैं, और यह लुप्त हो जाती है। आपने पहले ही यह आदत डाल ली है। यहाँ बैठे हुए, आपका शरीर क्यों नहीं झूमता? यदि आप वह अवस्था बनाए रखें जिसमें आपकी ऑंखें खुली होती हैं, तो क्या ऑंखों के धीमे से बंद होने पर आपका शरीर झूमेगा? निश्चित ही नहीं। आप सोचते हैं कि चीगोंग का अभ्यास इस प्रकार करना चाहिए और आपने ऐसी धारणा बना ली है। जैसे ही आप आपनी ऑंखें बंद करते हैं, आप यह जाने बिना कि आप कहाँ हैं लुप्त हो जाते हैं। हम कह चुके हैं कि आपकी मुख्य चेतना जागरूक होनी चाहिए, क्योंकि यह अभ्यास आपकी अपनी प्रकृति का संवर्धन करता है। आपको एक चेतन मन के साथ आगे बढ़ना चाहिए। हमारा एक ध्यान का व्यायाम भी है। हम ध्यान का अभ्यास कैसे करते हैं? हमारी सभी से आवश्यकता है कि आप कितना भी गहरा ध्यान करें, आपको पता होना चाहिए कि आप यहाँ अभ्यास कर रहे हैं। आपको अचेतनता की अवस्था में जाने की सख्त मनाही है जहाँ आप कुछ नहीं जानते। तब, कैसी विशिष्ट अवस्था उत्पन्न होगी? जब आप बैठते हैं, आपको आश्चर्यजनक और बहुत आरामदेह अनुभव होना चाहिए जैसे एक अण्डे के कवच में बैठे हों; आप व्यायाम का अभ्यास करते हुए स्वयं के बारे में जागरूक होंगे, किन्तु आपको अनुभव होगा जैसे आपका पूरा शरीर हिल नहीं सकता। हमारे अभ्यास में इसी प्रकार होना चाहिए। एक और प्रकार की अवस्था होती है जिसमें जब व्यक्ति कुछ समय बैठता है, उसे लगता है कि उसके पैर चले गए हैं, और सोच नहीं पाता कि पैर कहाँ गए; शरीर भी चला जाता है; बाहें भी चली जाती हैं; हाथ भी चले जाते हैं- केवल सिर शेष रहता है। जैसे व्यक्ति अभ्यास करता रहता है, वह पाता है कि सिर भी चला गया, और उसका केवल अपना मन बचा है, एक थोड़ा सा विचार कि वह यहाँ अभ्यास कर रहा है। यदि हम इस अवस्था को प्राप्त कर सकें तो यह समुचित होगा। ऐसा क्यों है? जब व्यक्ति इस अवस्था में अभ्यास करता है, शरीर पूर्ण रूप से रूपांतरित हो रहा होता है, और यह परिपूर्ण अवस्था है। हम इसलिए चाहते हैं कि आप इस शान्त अवस्था को प्राप्त करें। हालांकि, आपको निद्रा नहीं आनी चाहिए या अचेतन नहीं होना चाहिए, अन्यथा अच्छी वस्तुओं का अभ्यास कोई और कर रहा होगा।

हमारे सभी अभ्यासियों को ध्यान रखना चाहिए कि वे साधारण लोगों के बीच कभी भी बहुत असामान्य रूप से बर्ताव न करें। यदि आप साधारण लोगों के बीच बुरा उदाहरण प्रस्तुत करते हैं, दूसरे लोग कह सकते हैं : "ऐसा क्यों है कि वे लोग जो फालुन दाफा सीखते हैं सब इस प्रकार बर्ताव करते हैं?" यह उसी प्रकार है जैसे फालुन दाफा के मान का अनादर करना, इसलिए इस विषय पर अवश्य ध्यान रखें। दूसरे विषयों में और साधना अभ्यास के क्रम के दौरान, व्यक्ति को ध्यान रखना चाहिए कि वह उत्साह का मोहभाव उत्पन्न न करे- इस मानसिकता का असुरों द्वारा बहुत सरलता से लाभ उठाया जा सकता है।

बोल-चाल की साधना

बोल-चाल की साधना अतीत में धर्मों में भी आवश्यक रही है। यद्यपि, बोल-चाल की साधना जिसका संदर्भ धर्मों में था मुख्य रूप से पेशेवर अभ्यासियों से था- भिक्षु और ताओ जो बोलने के लिए मुँह नहीं खोलते थे। क्योंकि वे पेशेवर अभ्यासी थे, वे मानवीय मोहभावों को और अधिक सीमा तक छोड़ना चाहते थे। वे विश्वास करते थे कि जैसे ही व्यक्ति सोचता है, यह कर्म है। धर्मों ने कर्म को "अच्छा कर्म" और "दुष्कर्म" मंव वर्गीकृत किया है। भले ही यह अच्छा कर्म है या दुष्कर्म, बुध्द विचारधारा के शून्यवाद के मार्ग से या ताओ विचारधारा के रिक्तवाद के मार्ग से, इसे उत्पन्न नहीं किया जाना चाहिए। इसलिए, वे कहते थे कि वे कुछ नहीं करेंगे क्योंकि वे घटनाओं के कर्म संबंधों को नहीं देख सकते, अर्थात, यह कि वे विषय अच्छे हैं या बुरे, या उनके क्या कर्म संबंध हैं। एक सामान्य अभ्यासी जो इतने उच्च स्तर पर नहीं पहुँचा है इन वस्तुओं को नहीं देख सकता, इसलिए उसे चिन्ता होगी कि हालांकि कोई वस्तु सतह पर अच्छी जान पड़ती है, एक बार किए जाने पर यह बुरी हो सकती है। इसलिए, वह वूवेइ का अभ्यास करने का ध्यान रखता है और कुछ नहीं करेगा जिससे वह कर्म उत्पन्न करने से बच सके। यह इसलिए क्योंकि जैसे ही कर्म उत्पन्न होता है, उसे इसे समाप्त करना होता है और इसके लिए पीड़ा भोगनी होती है। उदाहरण के लिए, हमारे अभ्यासियों के लिए यह पूर्व निश्चित है कि वे किस अवस्था पर ज्ञान प्राप्त करेंगे। यदि आप अनावश्यक रूप से आधे रास्ते में इसमें कुछ मिला दें, यह आपके पूरे साधना अभ्यास में कठिनाइयाँ उत्पन्न करेगा। इसलिए व्यक्ति वूवेइ का अभ्यास करता है।

बुध्द विचारधारा में बोल-चाल की साधना की आवश्यक होती है, अर्थात, व्यक्ति की बोल-चाल उसके विचारों द्वारा निर्देशित होती है। परिणामस्वरूप, व्यक्ति के विचारों में मनोभाव होते हैं। यदि व्यक्ति का मन स्वयं थोड़ा-बहुत सोचना चाहता है, कुछ स्पष्ट करना चाहता है, कुछ करना चाहता है, या अपने संवेदनशील अंगों और चार हाथ-पैरों को चलाना चाहता है, यह साधारण लोगों के बीच एक मोहभाव हो सकता है। उदाहरण के लिए, एक-दूसरे के बीच मतभेद होते हैं, जैसे "तुम अच्छे हो, किन्तु वह अच्छा नहीं है," या "तुम्हारी साधना अच्छी है, किन्तु उसकी नहीं।" ये स्वयं में मतभेद हैं। आइए उस बारे में बात करें जो सामान्य है, जैसे "मैं यह या वह करना चाहता हूँ," या "इस कार्य को इस प्रकार या उस प्रकार करना चाहिए।" हो सकता है यह अन्जाने में किसी को दु:ख पहुँचाए। क्योंकि आपसी मतभेद सभी बहुत जटिल होते हैं, व्यक्ति अन्जाने में कर्म उत्पन्न कर सकता है। परिणामस्वरूप, व्यक्ति पूरी तरह अपना मुँह बंद रखना चाहता है और कुछ नहीं बोलना चाहता। अतीत में, धर्म बोल-चाल की साधना को बहुत गम्भीरता से लेते थे, और यही धर्म में सिखाया गया है।

हमारे फालुन दाफा अभ्यासियों में से अधिकांश (उन्हें छोड़ कर जो पेशेवर अभ्यासी हैं) साधारण लोगों के बीच साधना का अभ्यास करते हैं। इसलिए वे साधारण मानव समाज में सामान्य जीवन जीने से और समाज से मिलने-जुलने में बच नहीं सकते। सभी के पास एक व्यावसाय है और उसे यह अच्छे प्रकार करना चाहिए। कुछ लोगों को अपना कार्य बातचीत द्वारा करना होता है। इसलिए यह एक मतभेद नहीं है। यह मतभेद क्यों नहीं है? बोल-चाल की साधना जिससे हमारा तात्पर्य है वह दूसरों से बहुत भिन्न है। साधना मार्गों में भिन्नताओं के कारण, आवश्यकताएँ भी भिन्न होती हैं। हम सब को अभ्यासी के नैतिकगुण से बोलना चाहिए न कि मतभेद उत्पन्न करने चाहिएँ या कुछ अनुचित कहना चाहिए। अभ्यासियों की भाँति, हमें स्वयं को फा के आदर्श से मापना चाहिए जिससे यह निर्धारित हो सके कि हमें अमुक बातें कहनी चाहिएँ या नहीं। जो कहना चाहिए उससे समस्या उत्पन्न नहीं होगी यदि व्यक्ति फा के अनुसार अभ्यासियों के नैतिकगुण आदर्श का पालन करता है। इसके अतिरिक्त, हमें फा को फैलाने के लिए बोलना आवश्यक होता है, इसलिए नहीं बोलना असंभव है। बोल-चाल की साधना जो हम सिखाते हैं उससे तात्पर्य है : कि जो व्यक्ति के मान और निजी लाभ से संबंधित है जिसे साधारण लोगों के बीच नहीं छोड़ा जा सकता, वह जिसका समाज में अभ्यासियों के वास्तविक कार्यों से कोई संबंध नहीं है, समान पध्दति के अभ्यासियों के बीच बिन बुध्दि की गपशप, वे मोहभाव जो दिखावे को उजागर करते हैं, सुनी-सुनाई बातें या अफवाहें फैलाना, या कुछ सामाजिक विषयों पर वे वार्तालाप जिनके बारे में व्यक्ति उत्साहित है। मैं मानता हूँ कि ये सब साधारण लोगों के मोहभाव हैं। मैं सोचता हूँ कि इन क्षेत्रों में हमें ध्यान रखना चाहिए कि हम क्या कहते हैं- यह बोल-चाल की साधना है जिससे हमारा तात्पर्य है। अतीत में भिक्षु इन वस्तुओं को बहुत गम्भीरता से लेते थे, क्योंकि जैसे ही व्यक्ति सोचना आरम्भ करता है वह कर्म उत्पन्न करेगा। इसलिए, वे "शरीर, वचन, और मन" की साधना किया करते थे। शरीर की साधना से अर्थ था कि व्यक्ति को बुरे कार्य नहीं करने चाहिएँ। वचन की साधना का अर्थ था कि व्यक्ति को बोलना नहीं चाहिए। मन की साधना का अर्थ था कि व्यक्ति को सोचना भी नहीं चाहिए। अतीत में, मठों की पेशेवर साधना में इन वस्तुओं की कठोर आवश्यकताएँ थीं। हमें एक अभ्यासी के नैतिकगुण आदर्श के अनुसार बर्ताव करना चाहिए। यह उचित होना चाहिए कि व्यक्ति समझ सके कि उसे क्या बोलना या क्या नहीं बोलना चाहिए।



1 बीगू — "अनाज का बहिष्कार"; खाना और पानी से परहेज के लिए एक प्राचीन शब्द।
2 चोंगचिंग — दक्षिण-पश्चिम चीन का सबसे अधिक जनसंख्या वाला शहर।
3 त्येन जुआंग — ताओ विचारधारा में खड़े होकर करने वाला एक व्यायाम ।
4 बाई ह्ने — सिर की चोटी पर स्थिति एक्यूपंक्चर बिंदु।
5 शशन — मुख्य आत्मा के लिए एक ताओ शब्द।
6 ल्यू दोंगबिन — ताओ विचारधारा में आठ देवताओं में से एक।
7 शक्ति नाड़ी — चीनी चिकित्सा में, इन्हें ची की वाहिकाएँ कहा जाता है जिनकी शक्ति प्रवाह के लिए एक जटिल रचना होती है।
8 तीन यिन और तीन येंग — दोनों हाथों और पैरों की तीन यिन और तीन येंग नाड़ियों के लिए एक शब्द।
9 च्येन-कुन — स्वर्ग और पृथ्वी।
10 ह-च — नदी मार्ग।
11 जीनान — शान्डोंग प्रान्त की राजधानी।
12 ग्वेयांग — ग्वेजू प्रान्त की राजधानी।
13 चिंगदाओ — शान्डोंग प्रान्त में एक समुद्रतटीय नगर।
14 माओ-यो — शरीर के यिन और येंग भागों के बीच की सीमा रेखा।