Falundafaindia.org

अध्याय IV फालुन गोंग अभ्यास पध्दति
 

फालुन गोंग बुध्द विचारधारा का एक विशेष साधना अभ्यास है। इसकी विशिष्टता इसे बुध्द विचारधारा के अन्य साधना अभ्यासों से एक अलग पहचान देती है। फालुन गोंग एक विकसित साधना अभ्यास पध्दति है। विगत में इसका एक गहन साधना पध्दति के रूप में अभ्यास होता था। जिसकी आवश्यकता अत्यधिक ऊंचा नैतिकगुण अथवा बहुत अच्छे जन्मजात गुण युक्त अभ्यासी था। इसी कारण से इस साधना अभ्यास पध्दति को लोकप्रिय करना कठिन है। फिर भी और अधिक अभ्यासियों द्वारा अपने स्तर को ऊंचा करने के उद्देश्य से, इस साधना पध्दति की जानकारी के लिए तथा बहुसंख्यक समर्पित अभ्यासियों की मांग को पूरा करने के लिए, मैंने जनसाधारण के लिए उपयुक्त साधना क्रियाओं का एक संग्रह संकलित किया है। परिवर्तनों के बाद भी यह क्रियाएं अभी भी सामान्य पध्दतियों से कहीं श्रेष्ठ हैं, विशेषकर इस संबंध में कि यह क्या प्रस्तुत करती हैं तथा किस स्तर पर अभ्यास की जाती है।

फालुन गोंग अभ्यासी न सिर्फ अपनी शक्ति सामर्थ्य तथा अलौकिक सिध्दिओं को शीघ्र विकसित करते हैं, अपितु, बहुत कम समय में एक फालुन (धर्म चक्र) प्राप्त कर सकते हैं, जो कि सामर्थ्य में अतुलनीय है। एक बार निर्मित होने पर, फालुन हर समय अभ्यासी के उदर के निचले क्षेत्र में स्वत: ही आवर्तन करता रहता है। यह निरंतर ब्रह्माण्ड से शक्ति एकत्रित करता है तथा इसे अभ्यासी की बनती में गोंग (साधना शक्ति) में परिवर्तित करता है। अत: यह उद्देश्य कि ''फा अभ्यासी को परिष्कृत करता है'' प्राप्त होता है।

फालुन गोंग में क्रियाओं के पांच संग्रह हैं : बुध्द सहस्त्र हस्त प्रदर्शन क्रिया, फालुन स्थिर मुद्रा क्रिया, ब्रह्माण्ड के दो छोरों का भेदन क्रिया, फालुन अलौकिक परिपथ क्रिया तथा दिव्य शक्तियों को सुदृढ़ करने का मार्ग क्रिया।

1. फोज़न च्यान्शोउ फा (बुध्द सहस्त्र हस्त प्रदर्शन क्रिया)


सिध्दांत (सार)

बुध्द सहस्त्र हस्त प्रदर्शन क्रिया खिंचाव द्वारा सभी शक्ति नाड़ियों को खोलने पर केंद्रित है। इस क्रिया के अभ्यास के पश्चात नए अभ्यासी बहुत कम समय में शक्ति प्राप्त कर सकेंगे तथा अनुभवी अभ्यासी कम समय में अपने स्तर को ऊंचा कर सकते हैं। इस क्रिया का उद्देश्य है कि सभी शक्ति नाड़ियां प्रारम्भ में ही खुल जाएं, जिससे अभ्यासी तत्काल ही बहुत ऊंचे स्तर पर अभ्यास करने में समर्थ हो सकें। इस क्रिया की गतिक्रियाएं बहुत सरल हैं क्योंकि महान ताओ, नियमानुसार, सीखने में सरल तथा सुगम होता है। यद्यपि गतिक्रियाएं सरल हैं, वृहत स्तर पर यह सम्पूर्ण साधना पध्दति द्वारा उत्पन्न बहुत सी वस्तुओं को नियन्त्रित करती है। इस क्रिया का अभ्यास करते हुए एक शरीर गर्माहट महसूस करेगा, तथा एक अनूठी अनुभूति का अनुभव होगा जैसे वहां एक बहुत प्रभावशाली शक्ति क्षेत्र है। यह पूरे शरीर में सभी शक्ति धाराओं के खिंचाव तथा खुलने के कारण होगा। इसका उद्देश्य उन क्षेत्रों को खोलना है जहां शक्ति अवरूध्द है, जिससे शक्ति मुक्त तथा निर्विघ्न प्रवाह कर सके, शक्ति को शरीर के अन्दर तथा त्वचा के नीचे गतिमय बनाया जाए, इसका प्रबलता से प्रवाह किया जाए तथा बहुत अधिक मात्रा में शक्ति के ब्रह्माण्ड से सोखा जाए। इसी समय, यह अभ्यासी को इस योग्य भी बनाती है कि वह चीगोंग शक्ति क्षेत्र में होने की अवस्था में प्रवेश कर सके। यह क्रिया फालुन गोंग की आधारभूत क्रिया के रूप में अभ्यास की जाती है तथा सामान्यत: पहले की जाती है। यह साधना को मजबूती प्रदान करने वाली विधियों में से एक है।

कोउ ज्वे - (श्लोक जिन्हें क्रिया से ठीक पहले एक बार दोहराया जाता है)

शन शन हे यी[1], दोंग जिंग स्वी जी[2]

दिंग् त्यान् दूं ज़न[3] च्यान् शोउ फो ली[4]

तैयारी :

शरीर को तनाव रहित छोड़ें, परन्तु अधिक ढ़ीला न हो। स्वभाविक तरीके से खड़े हों तथा दोनों पैरों के मध्य कन्धे की चौड़ाई जितनी दूरी रखें। घुटनों को हल्का मोड़ें। घुटनों व कुल्हों को ढ़ीला रखें। ठोड़ी को थोड़ा अन्दर खींचें। जीभ की नोक से ऊपरी तालु को छुएं। दांतों के मध्य थोड़ा स्थान छोड़ें और आंखों को धीरे से बन्द करें। चेहरे पर शान्त भाव रहे। अभ्यास के दौरान आपको यह अनुभूति होगी कि आप बहुत विशाल व लम्बे हैं।

ल्यांग शोउ जीयिन (हाथों को मिलाएं)

हथेलियां ऊपर की तरफ रखते हुए दोनों हाथ उठाएं। दोनों अंगूठों के सिरे हल्के एक दूसरे को छुएं। चारों अंगुलियों को जोड़ें व उन्हें एक दूसरे के ऊपर रखें। पुरुषों के लिए बायां हाथ ऊपर होगा व महिलाओं के लिए दायां हाथ ऊपर होगा। हाथ से एक अण्डाकार आकृत्ति बनाएं व पेट के निचले क्षेत्र पर रहें। दोनों बाहों के ऊपरी भाग को थोड़ा आगे रखें, कोहनियां लटकी रहें ताकि बाहों के निचले भाग शरीर से अलग रहें (चित्र 1-1)।

     

मि ले शेन् याओ (मैत्रेय अपनी कमर फैलाते हुए)

जीयिन (हाथ मिलाने की मुद्रा चित्र 1-1) से आरम्भ करें। जुड़े हुए हाथों को ऊपर उठाते हुए दोनों टांगों को धीरे-धीरे सीधा करें। जब हाथ चेहरे के सामने पहुंच जाएं उन्हें अलग करें और धीरे-धीरे हथेलियों को ऊपर की तरफ मोड़ें। हाथ जब सर के ऊपर पहुंच जाएं, दोनों हथेलियां ऊपर की तरफ हों और दोनों हाथों की अंगुलियों के मध्य 20-25 से.मी. (8-10 इंच) (चित्र 1-2) की दूरी रहे। इसी समय सर को ऊपर की तरफ खींचे तथा पैरों को नीचे जमीन पर दबाएं। दोनों हथेलियों से ऊपर की तरफ जोर से दबाव दें और शरीर को 2-3 सैकन्ड के लिए खींचे। तत्काल सारे शरीर को ढ़ीला छोड़ दें। विशेष तौर पर घुटने व कूल्हे ढ़ीली अवस्था में पहुंच जाएं।

रू लाई ग्वान् दिंग (तथागत सर के कपाल में शक्ति भरते हुए)

ऊपर की मुद्रा का अनुसरण करें। दोनों हथेलियों को बाहर की ओर दोनों तरफ 1400 के कोण पर एक साथ मोड़ें, ताकि दोनों कलाइयों का अन्दरूनी भाग एक दूसरे के सामने हो जाए तथा एक चिमनी की आकृत्ति बन जाए। कलाइयों को मोड़ें व उन्हें नीचे की तरफ लाएं (चित्र 1-3)।

जब हाथ छाती के सामने पहुंचे तो हथेलियां छाती के करीब 10 से.मी. (4 इंच) की दूरी पर हों। दोनों हाथों को पेट के निचले भाग तक पहुंचने तक नीचे लाते रहें (चित्र 1-4)।

श्वांग शोउ हेशी (छाती के सामने दोनों हाथों को जोड़ें)

जब हाथ पेट के निचले भाग तक पहुंच जाएं तो तत्काल उन्हें उठा कर छाती के सामने हेशी की मुद्रा में लाएं (चित्र 1-5)। जब हेशी की मुद्रा बनाएं तो दोनों हाथों की अंगुलियों को व हथेलियों के आधार को एक दूसरे से दबाएं व उनके बीच खाली जगह रहे। कोहनियों को ऊपर उठाएं जिससे दोनों बाजुएं एक सीधी रेखा में आ जाएं। (हेशी जीयिन की मुद्रा के अलावा हाथों को कमल मुद्रा में रखें। आगे आने वाली क्रियाओं में भी यही स्थिति रहेगी)।

     

ज़ांग ज्हि च्यान् कुन् (लोक व धरती की ओर हाथों को दिखाना)

हेशी की मुद्रा से आरम्भ करें। दोनों हाथों को 2-3 से.मी. (1 इंच) की दूरी पर अलग करें तथा इसके साथ ही उन्हें घुमाना शुरू करें। पुरुष बायां हाथ तथा महिलाएं दाहिना हाथ छाती की तरफ घुमाएं तथा सीधा हाथ बाहर की तरफ घुमाएं ताकि बायां हाथ ऊपर व दायां हाथ नीचे हो जाए। दोनों हाथ कोहनी से सीधे हों (चित्र 1-6)।

हथेली नीचे की तरफ रखते हुए बाएं हाथ को बाईं तरफ ऊपर की ओर तिरक्षा तब तक खींचे जब तक की हाथ सर के स्तर तक न पहुंच जाए। दायां हाथ अभी तक छाती पर रहे व हथेली ऊपर की तरफ रहे। जैसे ही बाएं हाथ को और आगे बढ़ाएं, सारे शरीर को धीरे-धीरे खींचें और सर को ऊपर की ओर धकेलें तथा पैरों को नीचे की तरफ दबाएं। बाएं हाथ को ऊपर की ओर बाईं दिशा में खींचें, जबकि दायां हाथ जो कि छाती के सामने है को बाहर की ओर खींचे (चित्र 1-7)। दो-तीन सैकेण्ड तक खींचे रखें। फिर शरीर को एकदम ढ़ीला छोड़ दें, बाएं हाथ को छाती के सामने लाएं व हेशी करें (चित्र 1-5)।

फिर हथेलियों को दोबारा घुमाएं। दायां हाथ (महिलाओं के लिए बायां हाथ) ऊपर रहे और बायां हाथ नीचे रहे (चित्र 1-8)।

दाएं हाथ से बाएं हाथ द्वारा की गई क्रियाओं का अनुसरण करें, अर्थात बाईं हथेली नीचे की ओर रखते हुए दाएं हाथ को दाईं तरफ ऊपर की ओर तिरक्षा तब तक खींचे जब तक कि हाथ सर के स्तर तक न पहुंच जाएं। बायां हाथ अभी तक छाती पर रहे व हथेली ऊपर की तरफ। खिंचाव के पश्चात (चित्र 1-9), तत्काल सारे शरीर को ढ़ीला छोड़ दें। हाथ को छाती के सामने हेशी में लाएं।

जिन् होउ फेन् शेन् (स्वर्णिम वानर अपने शरीर को विभाजित करते हुए)

हेशी से आरंभ करें। दोनों हाथों को छाती पर अलग करें तथा उन्हें शरीर के दोनों तरफ बढ़ाएं कि हाथ व कन्धे एक सीधी रेखा में आ जाएं। धीरे-धीरे सारे शरीर को खींचे, सर को ऊपर की तरफ धकेलें तथा पैरों को नीचे की तरफ दबाएं, दोनों हाथों पर दबाव डालते हुए सीधा करें और चार दिशाओं (चित्र 1-10) में 2-3 सैकेण्ड तक खिंचाव रखें। तत्काल सारे शरीर को ढ़ीला छोड़ दें व हेशी में आएं ।

   

श्वांग लोंग शिआ हाइ (दो अजगर समुद्र में छलांग लगाते हुए)

हेशी से दोनों हाथों को अलग करें और उन्हें सामने नीचे की ओर बढ़ाएं। दोनों हाथ सीधे और समानान्तर हो जाएं तो उनके व पैरों के बीच लगभग 300 का कोण बनना चाहिए। (चित्र 1-11) सारे शरीर को खींचे, सर को ऊपर की ओर धकेलें व पैरों को नीचे की ओर दबाएं। 2-3 सैकेण्ड तक खिंचाव रखें। तुरंत सारे शरीर को ढ़ीला छोड़ दें। दोनों हाथों को हेशी में लाएं।

पू सा फू ल्यान् (बौधिसत्व कमल पर हाथ रखे हुए)

हेशी से दोनों हाथो को अलग करें व उन्हें तिरछा शरीर के दोनों तरफ बढ़ाएं व हाथों व पैरों के बीच करीब 300 का कोण बने। (चित्र 1-12) सारे शरीर को धीरे-धीरे खींचे व अंगुलियों को हल्की ताकत के साथ नीचे की तरफ खींचें। फिर तुरंत सारे शरीर को ढ़ीला छोड़ दें। हाथ को छाती के सामने हेशी में लाएं।

लुओ हन् बी शन् (अरहट पर्वत को अपनी पीठ पर सम्भाले हुए)

हेशी से आरम्भ करें। दोनों हाथों को अलग करें व उन्हें शरीर के पिछली तरफ बढ़ाएं, साथ ही साथ हथेलियां पीछे की तरफ रहें। हाथ जब शरीर की बगल से गुजर रहा हो तो कलाइयों को धीरे से मोड़ें। हाथ जब शरीर के पीछे पहुंचे तो कलाइयों व शरीर के बीच 450 का कोण बने (चित्र 1-13)। पूरे शरीर को धीरे-धीरे खिंचाव दें जब दोनों हाथ सही स्थिति में पहुंच जाएं तो 2-3 सैकेण्ड तक खिंचाव रखें। तुरन्त सारे शरीर को ढ़ीला छोड़ दें। हाथ को वापिस लें व हेशी में पहुंचें।

     

जिन् गंग पाई शन् (वज्र एक पर्वत को धकेलते हुए)

हेशी से आरम्भ करें। दोनों हाथों को अलग करें व हथेलियों को आगे की ओर धक्का दें। अंगुलियां ऊपर की तरफ हों। बाहों को कन्धे के स्तर पर रखें। हाथ जब सीधे हो जाएं तो सर को ऊपर धकेलें और पैरों को नीचे की तरफ दबाएं। शरीर को सीधा रखें (चित्र 1-14)। दो-तीन सैकेण्ड तक खिंचाव रखें। तुरन्त सारे शरीर को ढ़ीला छोड़ दें। दोनों हाथों को छाती के सामने लाएं व हेशी में वापिस पहुंचें।

दाइ कोव श्याओ फु (उदर के निचले क्षेत्र के समक्ष हाथों को आमने सामने रखना)

हेशी से आरम्भ करें। हाथों को धीरे-धीरे नीचे की तरफ बढ़ाएं व हथेलियों को उदर की तरफ करें। जब हाथ उदर के निचले क्षेत्र तक पहुंच जाएं तो उन्हें एक दूसरे के ऊपर करें। पुरुषों के लिए बायां हाथ अन्दर की तरफ रहे व महिलाओं के लिए दायां हाथ अन्दर की तरफ रहे। हथेलियां शरीर की तरफ रहें व दोनों हाथों के बीच व निचले हाथ व पेट के बीच करीब 3 से.मी. (1 इंच) की दूरी रहे। दोनों हाथों को करीब 40 से 100 सैकेण्ड तक एक दूसरे के ऊपर रहने दें। (चित्र 1-15) क्रिया का अंत ल्यांग शोउ जीयिन् (चित्र 1-16) से करें।


2. फालुन ज़ुऑंग फा (फालुन स्थिर मुद्रा क्रिया)

सिध्दांत :

यह फालुन गोंग क्रियाओं का दूसरा संग्रह है। यह शान्त भाव में खड़े रहने की क्रिया है जिसमें चक्र को थामने की चार मुद्राएं हैं। मुद्राएं एक सी हैं व हर मुद्रा में काफी समय तक रहने की आवश्यकता है। नए अभ्यासियों को बाहों में भारीपन व दर्द महसूस हो सकता है, फिर भी अभ्यास के पश्चात सारा शरीर काफी हल्का महसूस करेगा व किसी प्रकार की थकावट महसूस नहीं होगी। जैसे जैसे अभ्यास की आवृत्ति व समयावधि बढ़ेगी, अभ्यासी फालुन को हाथों के मध्य घूमता हुआ अनुभव कर सकेंगे। इस क्रिया का बार-बार अभ्यास सारे शरीर को पूरी तरह खोल देगा व शक्ति सामर्थ्य को बढ़ाएगा। फालुन स्थिर मुद्रा क्रिया एक सधन साधना का तरीका है जो विवेक बढ़ाती है, स्तर ऊंचा करती है व दिव्य शक्तियों को सुदृढ़ करती है। इसमें गतिविधियां सरल हैं फिर भी इस क्रिया से बहुत कुछ प्राप्त किया जा सकता है क्योंकि यह जो अभ्यास कराती है उसमें सभी कुछ सम्मिलित है। अभ्यास के दौरान इनमें गतिविधियां स्वभाविक रूप से करें। आपको इस बात का बोध अवश्य रहना चाहिए कि आप अभ्यास कर रहे हैं।

हिलना-डुलना नहीं चाहिए हालांकि थोड़ा हिलना सामान्य है। फालुन गोंग की अन्य क्रियाओं के सामान ही इस क्रिया का अन्त अभ्यास का अन्त नहीं है क्योंकि फालुन कभी आवर्तन समाप्त नहीं करता। प्रत्येक मुद्रा की अवधि अलग-अलग व्यक्तियों के लिए अलग हो सकती है; जितनी ज्यादा, उतनी उत्तम।

कोउ ज्वे - (श्लोक जिसे क्रिया से ठीक पहले एक बार दोहराया जाता है)

शेंग हुइ ज़ेग ली[5] रोंग् शिन् चिंन ति[6]

सी मिआओ सी वु[7] फा लुन च्यु ची[8]

तैयारी :

सारे शरीर को तनाव रहित छोड़ें परन्तु बहुत ढ़ीला नहीं। स्वभाविक तरीके से खड़े हों व दोनों पैर कन्धे की चौड़ाई जितनी दूरी पर हों। घुटनों को हल्का मोड़ें। घुटनों व कूल्हों को ढ़ीला छोड़ दें। ठोड़ी को थोड़ा अन्दर करें। जीभ की नोक से ऊपरी तालु को छुएं। दांतों के मध्य थोड़ा स्थान छोड़ें। होठों को बंद करें व आहिस्ता से आंखें बन्द करें। चेहरे पर शान्त भाव रखें। श्वांग शोउ जीयिन (हाथों को मिलाएं) (चित्र 2-1)।

तोउ च्यान बाउ लुन् (चक्र को सर के सामने थामना)

जीयिन से आरम्भ करें। धीरे-धीरे दोनों हाथों को अलग करते हुए उदर के निचले क्षेत्र से ऊपर उठाएं। जब हाथ सर के सामने पहुंच जाए तो हथेलियां भोहों के स्तर पर रखें व सर की तरफ हों। दोनों हाथों की अंगुलियों के मध्य 15 से.मी. (5 इंच) की दूरी रखें। दोनों हाथों से एक वृत्ता बनाएं व शरीर तनाव रहित रखें (चित्र 2-2)।

     

फु च्यान् बाओ लुन् (चक्र को उदर के सामने थामना)

उपरोक्त अवस्था से दोनों हाथों को धीरे-धीरे नीचे करें। मुद्रा न बदले जब तक कि हाथ उदर के निचले क्षेत्र तक न पहुंच जाएं। हाथों व उदर के मध्य करीब 10 से.मी. (4 इंच) की दूरी रखें। कोहनियों को आगे की तरफ रखें व बाहों का निचला हिस्सा खुला रहे। हथेलियां ऊपर की ओर रहें। दोनों हाथों की अंगुलियां एक दूसरे से करीब 10 से.मी. (4 इंच) की दूरी पर हों। बाहें एक वृत्त बनाएं (चित्र 2-3)।

तोव दिंग् बाओ लुन् (चक्र को सर के ऊपर थामना)

उपरोक्त अवस्था से हाथों को धीरे-धीरे उठाएं। बाहों की वृत्ताकार अवस्था यथावत बनी रहे। चक्र को सर के ऊपर थामें व अंगुलियां एक दूसरे की तरफ हों। हथेलियां नीचे की तरफ रहें व दोनों हाथों की अंगुलियों के मध्य 20-30 से.मी. (8-12 इंच) की दूरी रहे। बाहें वृत्त बनाएं। कन्धों, हाथों, कोहनियों व कलाइयों को तनाव रहित रखें (चित्र 2-4)।

ल्यांग स बाओ लुन् (सर के दोनों ओर चक्र को थामना)

उपरोक्त अवस्था से हाथों को नीचे करते हुए सर के दोनों ओर लाएं। हथेलियां कानों की ओर रखें, बाहों को कोहनी से हाथ तक सीधा रखें व कन्धे तनाव रहित रखें। हाथों को कानों के बहुत अधिक पास न रखें (चित्र 2-5)।

चित्र 2-6 चित्र 2-7

दाइ कोव श्याओ फु (उदर के निचले क्षेत्र के सामने दोनों हाथों को आमने सामने रखनां)

धीरे-धीरे दोनों हाथों को पूर्व अवस्था से उदर के निचले क्षेत्र तक लाएं। हाथों को एक दूसरे के ऊपर करें (चित्र 2-6)।

क्रिया का अन्त ल्यांग शोव जीयिन् (हाथों का मिलाना) (चित्र 2-7) से करें।


3. ग्वानतोंग ल्यांग ज़ि फा (ब्रह्माण्ड के दो छोरों का भेदन क्रिया)

सिध्दांत :

इस क्रिया का उद्देश्य ब्रह्माण्ड की शक्ति का भेदन करना व उसका शरीर की भीतरी शक्ति के साथ विलय करना है। बहुत अधिक मात्रा में शक्ति बाहर निकाली जाती है व ली जाती है। बहुत ही कम समय में अभ्यासी बीमारी मूलक व काली ची अपने शरीर से बाहर निकाल सकते हैं तथा समुचित मात्रा में ब्रह्माण्ड की शक्ति अंदर ले सकते हैं, जिससे उनका शरीर निर्मल होता है व ''शुध्द श्वेत शरीर'' की प्राप्ति शीघ्र हो सकती है। इसके साथ-साथ यह क्रिया सर के ऊपरी भाग को खोलने में सहायता करती है व पैरों के नीचे की धाराओं को खोलती है।

इस क्रिया को करने से पहले आप कल्पना करें कि आप स्वर्ग व पृथ्वी के मध्य खड़े दो अत्यंत विशाल व अत्यधिक लम्बे खोखले स्तंभों के समान हैं। हाथों की ऊपर की ओर गति के साथ शरीर के अन्दर की ची तेजी से सर के ऊपरी हिस्से से निकल कर ब्रह्माण्ड के ऊपरी छोर तक पहुंच जाती है, तथा हाथों की नीचे की ओर गति के साथ यह पैरों से होती हुई ब्रह्माण्ड के निचले छोर तक पहुंच जाती है। हाथों की गति का अनुसरण करते हुए, शक्ति दोनों छोरों से वापिस शरीर में आती है तथा फिर विपरीत दिशा से उत्सर्जित हो जाती है। गति को नौ बार दोहराएं। नवीं गति के दौरान, बाएं हाथ को (महिलाएं दाएं हाथ को) ऊपर रहने दें व दूसरे हाथ के ऊपर आने की प्रतीक्षा करें। फिर एक साथ दोनों हाथों को नीचे की ओर ले जाएं, जिससे शक्ति निचले छोरों तक पहुंच जाए तथा फिर वापिस शरीर के साथ-साथ ऊपरी छोरों तक पहुंच जाए। हाथों की ऊपर-नीचे नौ बार गति के पश्चात शक्ति वापिस शरीर में आ जाती है। पेट के निचले क्षेत्र पर, फालुन को चार बार घड़ी की दिशा (सामने से देखने पर) में घुमाएं, जिससे शक्ति जो बाहर है वापिस शरीर में आ जाती है। हाथ को मिलाएं व क्रिया का अन्त करें परन्तु यह अभ्यास का अन्त नहीं है।

कोउ ज्वे - (श्लोक जिन्हें क्रिया से ठीक पहले एक बार दोहराया जाता है)

ज़िग हुवा बन् ती[9] फा काई दिंग दि[10];

शिन् चि यि मेंग्[11] तोंग त्यान च दि[12]

तैयारी :

शरीर को ढ़ीला छोड़ दें परंतु अधिक ढ़ीला न रहे। स्वाभाविक तरीके से खड़े हों तथा दोनों पैरों के मध्य कन्धे की चौड़ाई जितनी दूरी हो। घुटनों को हल्का मोड़ें। घुटनों व कूल्हों को ढ़ीला रखें। ठोड़ी को थोड़ा अन्दर खींचें। जीभ की नोक से ऊपरी तलु को छुएं। दांतों के बीच थोड़ा स्थान छोड़ें और आंखों को धीरे से बन्द करें। चेहरे पर शान्त भाव रहे। श्वांग शोउ जीयिन (हाथों को मिलाएं) (चित्र 3-1) और छाती के सामने हेशी (हाथों को जोड़ना) करें (चित्र 3-2)।

     

तान शोउ चोंग् ग्वान (एक हाथ की गति)

हेशी से एक हाथ की गति आरम्भ करें। हाथों को धीरे-धीरे शरीर के बाहर चिजी (शक्ति यंत्र) के साथ-साथ गति दें। हाथों की गति का अनुसरण करते हुए शरीर के अन्दर की शक्ति लगातार ऊपर व नीचे प्रवाह करती है। पुरुष पहले बायां हाथ ऊपर की ओर उठाएं व महिलाएं पहले दाहिना हाथ ऊपर की ओर उठाएं (चित्र 3-3)।

हाथों को धीरे-धीरे उठाते हुए चेहरे के सामने की ओर से ले जाते हुए शरीर के ऊपर तक उठाएं। इसी समय धीरे-धीरे दांये हाथ को (महिलाएं बाएं हाथ को) नीचे की तरफ ले जाएं। इस तरह दोनों हाथों को एक के बाद एक ऊपर नीचे करें (चित्र 3-4)। हथेली शरीर की तरफ करीब 10 से.मी. (4 इंच) की दूरी पर रहे। अभ्यास करते समय पूरे शरीर को तनाव मुक्त रखें। हाथ की एक बार ऊपर व नीचे की गति को एक गिनें। इस प्रक्रिया को नौ बार दोहराएं।

श्वांग शोउ चोंग ग्यान (दोनों हाथों की गति)

नौवीं एक हाथ की गति में बाएं हाथ (महिलाएं दाहिने हाथ) को ऊपर ही रहने दें और प्रतीक्षा करें व दूसरे हाथ को ऊपर की तरफ उठाएं। दोनों हाथ ऊपर की ओर करें (चित्र 3-5)।

इसी समय दोनों हाथों को नीचे की ओर ले जाएं (चित्र 3-6)। हथेलियां शरीर की तरफ 10 से.मी. (4 इंच) की दूरी पर ही रहें। दोनों हाथों द्वारा एक बार ऊपर व नीचे की गति को एक गिनें। इस प्रक्रिया को नौ बार दोहराएं।

     

श्वांग शोउ त्वी दोंग फालुन (फालुन को दोनों हाथों द्वारा घुमाना)

दोनों हाथों की गति के बाद दोनों हाथों को मुख व छाती के सामने से गुजारते हुए उदर के निचले क्षेत्र तक नीचे की ओर लाएं। अब बायां हाथ अन्दर की ओर (महिलाएं दायां हाथ अन्दर की ओर) रखते हुए उदर के निचले क्षेत्र में फालुन को घुमाएं (चित्र 3-7, 3-8 व 3-9), दोनों हाथों के बीच व निचले हाथ व पेट के बीच करीब 3 से.मी. (1 इंच) की दूरी रखें। फालुन को चार बार घड़ी की दिशा में (सामने से देखने पर) घुमाएं, जिससे बाहर से शक्ति वापिस शरीर के अन्दर आ जाए। फालुन को घुमाते समय हाथों की गति को उदर के निचले क्षेत्र के अन्दर ही रखें।

ल्यांग शोउ जीयिन् (चित्र 3-10)।


4. फालुन ज़ोउ त्यान् फा (फालुन अलौकिक परिपथ क्रिया)

सिध्दांत :

यह क्रिया मनुष्य के शरीर की शक्ति को एक बहुत बड़े क्षेत्र में फैलने के योग्य बनाती है। एक अथवा अनेक नाड़ियों से गुजरने की अपेक्षा, शक्ति शरीर के यिन पक्ष से येंग पक्ष की तरफ बार-बार प्रवाहित होती है। यह क्रिया शक्ति धाराओं को खोलने की साधारण विधियों अथवा बड़ी (महान) व छोटी स्वर्गिक परिक्रमाओं की अपेक्षा कहीं श्रेष्ठ है। यह फालुन गोंग की मध्यम स्तर की क्रिया है। पिछली तीन क्रियाओं के आधार पर इस क्रिया का उद्देश्य शरीर के सभी धारा प्रवाहों (महान स्वर्गिक परिक्रमा सहित) को खोलना है, जिससे कि पूरे शरीर में, ऊपर से नीचे तक, शक्ति धाराएं धीरे- धीरे एक दूसरे से जुड़ जाए। इस क्रिया की सबसे बड़ी विशेषता, फालुन के चक्करों का इस्तेमाल मानव शरीर की सभी असामान्य परिस्थितियों को ठीक करना है, जिससे मानव शरीर - एक छोटा ब्रह्मांड - अपनी मूल अवस्था में लौटता है तथा पूरे शरीर की शक्ति स्वछन्द व निर्विघ्न रूप से प्रवाहित होती है। इस स्तर तक पहुंचने तक, अभ्यासी शी-ज्यान्-फा (त्रिलोक-फा साधना) के बहुत ऊंचे स्तर तक अपनी दाफा (महान मार्ग) की साधना आरम्भ कर सकते हैं। इस समय उनकी शक्ति सामर्थ्य व दैवीय शक्तियां आश्चर्यजनक रूप से बढ़ती हैं। इस क्रिया में हाथों को चिजी (शक्ति तन्त्र) के साथ-साथ बढ़ाएं। हर गति आराम से, चीनी व शान्त है।

कोउ ज्वे - पद्य (पंक्तियां) जिन्हें क्रिया से ठीक पहले एक बार दोहराना है।

श्वान् फा ज़ि शु[13] शिन चिंग सि यु[14]

फन् बेन् ग्वी ज़ेन[15] यू यू सि चि[16]


तैयारी :

सारे शरीर को तनाव रहित करें परन्तु बहुत ढ़ीला नहीं। स्वभाविक तरीके से खड़े हों तथा दोनों पैरों के मध्य कन्धे की चौड़ाई जितनी दूरी हो। घुटनों को हल्का मोड़ें। घुटनों व कूल्हों को तनाव रहित रखें। ठोड़ी को थोड़ा अन्दर खींचे।

जीभ की नोक ऊपरी तलुए को छुए। दांतों के बीच थोड़ा स्थान छोड़ें और आंखों को धीरे से बन्द करें। चेहरे पर शांत भाव रहे।

श्वांग शोउ जैयिन (हाथों को मिलाएं) (चित्र 4-1) और हेशी करे (हाथों को नमस्कार की तरह जोड़ें) (चित्र 4-2), हाथों को नीचे पेट के निचले क्षेत्र की तरफ लाएं और हथेलियों को शरीर की तरफ मोड़ें। हाथों व शरीर के बीच करीब 10 सेंमी. (4 इंच) की दूरी रखें। हाथ जब पेट के निचले क्षेत्र से गुजरे तो उन्हें और नीचे की तरफ खिंचाव देते हुए पांवों के अन्दरकी तरफ से होते हुए आगे बढ़ाएं। इसी समय कमर को मोड़ें और बैठ जाएं (चित्र 4-3)।

 

जब अंगुलियां जमीन के पास तक पहुंच जाएं तो वृत्त बनाते हुए हाथों को पैरों के सामने से होते हुए पैरों के पीछे की तरफ लाएं (चित्र 4-4)।

कलाइयों को थोड़ा मोड़ें व हाथों को पांवों के पीछे से होते हुए ऊपर उठाएं (चित्र 4-5)।

हाथों को पीछे की तरफ से ऊपर उठाते हुए कमर सीधी करें (चित्र 4-6) क्रिया करते समय दोनों हाथों को शरीर के किसी भी हिस्से से न छूने दें क्योंकि इससे दोनों हाथों की शक्ति वापिस शरीर में चली जाएगी।

जब हाथ और अधिक ऊपर न उठ सकें तो उनकी खोखली मुट्ठी बनाएं (चित्र 4-7) और उन्हें हाथों के नीचे से गुजारते हुए सामने की तरफ लाएं।

दोनों बाहों को छाती के सामने काटें (क्रास करें)। इस बात की कोई विशेष आवश्यकता नहीं है कि कौन सा हाथ ऊपर रहे और कौन सा नीचे, यह आपकी आदत पर निर्भर है। यह महिलाओं व पुरुष दोनों के लिए समान है (चित्र 4-8)।

खोखली मुट्ठियों को खोलें व हाथों को कन्धे के ऊपर रखें (कुछ स्थान छोड़ते हुए)। दोनों हाथों को बहों के येंग पक्ष (बाहरी तरफ) से गुजारें। जब कलाइयों तक पहुंच जाए तो दोनों हाथों को इस तरह मोड़ें कि हथेलियां आमने-सामने हों और दोनों के मध्य 3-4 सेंटीमीटर की दूरी हो। जैसे कि बाहरी अंगूठा ऊपर की तरफ व अन्दर का अंगूठा नीचे की तरफ हो। इस समय हाथ व बांह एक सीधी रेखा बनाएं (चित्र 4-9)।

दोनों हाथों को इस तरह मोड़ें जैसे की गेंद पकड़ी हुई हो, अर्थात बाहर की तरफ वाला हाथ अन्दर की तरफ आ जाए व अन्दर की तरफ वाला हाथ बाहर की तरफ हो जाए। हाथों को बाहों के यिन पक्ष (अन्दर की तरफ) से गुजारते हुए ऊपर उठाएं व उन्हें सिर के पीछे की तरफ ले जाएं। सिर के पीछे दोनों हाथ एक दूसरे को काटती हुई स्थिति में रहेंगे (चित्र 4-10)।

फिर दोनों हाथों को और नीचे रीढ़ की हड्डी की तरफ बढ़ाएं (चित्र 4-11)।

दोनों हाथों को अलग करें, अंगुलियां नीचे की तरफ हों व पीठ की शक्ति से जुड़ें। फिर दोनों हाथों को एक दूसरे के समानान्तर सिर के ऊपर से लाते हुए छाती के सामने तक लाएं (चित्र 4-12)। इस तरह एक स्वर्गिक चक्कर पूरा होता है। इस गति को नौ बार दोहराएं। इस क्रिया की समाप्ति के पश्चात दोनों हाथों को छाती के साथ-साथ नीचे, पेट के निचले हिस्से तक लाएं।

     

     

दाई कोउ शियाओ फु (पेट के निचले हिस्से में दोनों हाथों को एक दूसरे के ऊपर करें) (चित्र 4-13) व श्वांग शोउ जैयिन (दोनों हाथों को मिलाएं) (चित्र 4-14)।


5. शेन् तोंग जिआ चि फा (दिव्य शक्तियों को सुदृढ़ करने की क्रिया)

सिध्दांत :

दिव्य शक्तियों को सुदृढ़ करने की क्रिया एक शान्तिपूर्ण अभ्यास करने की क्रिया है यह एक बहुआयामी क्रिया है जिसका उद्देश्य बुध्द के हस्त संकेतों द्वारा फालुन को घुमाकर दिव्य शक्तियों (आलौकिक सिध्दियों समेत) तथा शक्ति सामर्थ्य को सुदृढ़ करना है। यह एक मध्यम स्तर से ऊपर की क्रिया है व वास्तविकता में यह गुप्त अभ्यास के लिए रखी जाती थी। परन्तु संकल्पित अभ्यासियों की मांग पर मैंने इस साधना क्रिया को विशेष रूप से सार्वजनिक कर दिया है जिससे पूर्व निर्धारित अभ्यासियों का उध्दार किया जा सके। इस क्रिया में दोनों पैरों को एक दूसरे के ऊपर रखकर बैठना होता है। पूर्ण कमल मुद्रा उत्तम है परन्तु अर्ध्द कमल मुद्रा भी स्वीकार्य है। क्रिया के दौरान ची का प्रवाह बहुत प्रभावशाली होता है और शरीर के आस-पास का शक्ति क्षेत्र बहुत बड़ा होता है। हाथ, गुरु द्वारा स्थापित शक्ति तन्त्र (चिजीं) का अनुसरण करते हैं , जब हाथ की गति प्रारम्भ होती है तो हृदय विचारों का अनुसरण करता है। जब दिव्य शक्तियों को सुदृढ़ करें तो मन को रिक्त रखें तथा हल्का सा ध्यान दोनों हथेलियों पर केन्द्रित करें। हथेलियों का मध्य गर्माहट, भारीपन, झनझनाहट, सुन्ना, जैसे कोई बोझ उठाया हो वगैरह महसूस करेगा, फिर भी किसी संवेदना का जानबूझकर पीछा न करें। उसे स्वभाविक रूप से होने दें। जितना ज्यादा समय तक टांगे एक दूसरे के ऊपर (पूर्ण कमल मुद्रा) रहेगी, उतना ज्यादा अच्छा रहेगा और यह आपकी सहनशीलता पर निर्भर है। जितना ज्यादा कोई बैठेगा, उतनी गहन क्रिया होगी और उतनी ही तीव्रता से शक्ति की वृध्दि होगी। इस क्रिया को करते समय, (कुछ भी नहीं सोचिए। यहां पर मस्तिष्क में कोई उद्देश्य नहीं है) सहजता से शान्ति में चले जाएं। धीरे-धीरे सक्रिय स्थिति, जिससे शान्ति की स्थिति में तो लगते हैं परन्तु दिंग (गहन शान्ति) में नहीं है, से दिंग में चले जाएं। परन्तु आपकी मुख्य चेतना को इस बात का आभास रहना चाहिए कि आप क्रिया कर रहे हैं।

कोउ ज्वे - पद्य (पंक्तियां) जिन्हें क्रिया से ठीक पहले एक बार दोहराना है।

यू यि वू यि[17] यिन स्वि जि चि[18]

सि कोंग फि कोंग[19] दोंग जिंग रू यि[20]

ल्यांग रोउ जैयिन (हाथों को मिलाएं)

कमल मुद्रा में दोनों पैरों को एक दुसरे के दुसरे को उपर रखकर बैठें। सारा शरीर तनाव रहित रखें परन्तु अधिक ढ़ीला न हो। कमर व गर्दन को सीधा रखें। निचले जबड़े को थोड़ा अन्दर खींचे। जीभ की नोक से ऊपरी तालु को छुए। दांतों के बीच थोड़ा स्थान छोड़ें और आंखों को धीरे से बन्द करें। हृदय को करूणा से भरे। चेहरे पर शान्त भाव रखें। पेट के निचले क्षेत्र में जैयिन करें व धीरे-धीरे शान्ति में प्रवेश करें (चित्र 5-1)।

प्रथम हस्त संकेत

जब हाथ की गति आरम्भ होती है तो हृदय विचारों का पीछा करता है। गति को गुरु द्वारा स्थापित चिजीं (शक्ति तन्त्र) का अनुसरण करना चाहिए। हाथों की गतियां बिना किसी जल्दबाजी के धीरे-धीरे व शान्त होनी चाहिए। जैयिन की स्थिति में दोनों हाथों को धीरे-धीरे सिर के सामने पहुंचने तक उठाएं। फिर धीरे-धीरे हथेलियां मोड़ें कि वह ऊपर की तरफ हो जाएं। जब हथेलियां ऊपर की तरफ हों, हाथ भी अपनी सबसे ऊंची स्थिति में पहुंच जाते हैं (चित्र 5-2)।

फिर दोनों हाथों को अलग करें व गोलाई में घुमाते हुए सिर के सामने तक लाएं (चित्र 5-3)।

इसके तुरंत बाद दोनों हाथों को धीरे से नीचे की तरफ छोड़ें। कोहनियों को अन्दर की तरफ ही रखने की कोशिश करें। हथेलियां ऊपर की तरफ तथा अंगुलियां सामने की तरफ रहें (चित्र 5-4)।

फिर दोनों कलाइयों को घुमाएं और उन्हें छाती के सामने काटें (क्रास करें)। पुरुषों के लिए बायां हाथ बाहर की तरफ गति करें व महिलाओं के लिए दायां हाथ (चित्र 5-5)।

जब हाथों व बाहों से एक सीधी रेखा बन जाए तो बाहर वाले हाथ की कलाई को बाहर की तरफ घुमाएं, जिससे हथेली घूम कर ऊपर की तरफ हो जाएगी। एक अर्ध्द वृत्त बनाएं और हथेली को घुमाएं जिससे वह ऊपर की तरफ हो जाए व अंगुलियां पीछे की तरफ हों। हाथ हल्की ताकत का इस्तेमाल करता है (लगाता है)। वह हाथ जो अन्दर की तरफ है कि हथेली को छाती के सामने काटने के पश्चात घुमाएं जिससे वह नीचे की तरफ हो जाए। बांह को सीधा करें। बांह को घुमाएं जिससे हथेली ऊपर की तरफ हो जाए। हाथ व बाहें जब वह शरीर के निचले क्षेत्र के सामने हों का शरीर से 300 का कोण बनना चाहिए (चित्र 5-6)।

   

   

द्वितीय हस्त संकेत

पिछली मुद्रा (चित्र 5-6) के पश्चात बायां हाथ (ऊपर वाला हाथ) अन्दर की तरफ गति करेगा। जब दाहिना हाथ ऊपर की तरफ गति करेगा तो इसकी कलाई घूम कर शरीर की तरफ हो जाएगी। पहले संकेत की भांति ही हाथ की गति रहे परन्तु दाएं व बाएं हाथ की गतियां बदल जाएंगी। हाथों की स्थिति भी एकदम विपरीत हो जाएंगी (चित्र 5-7)।

तृतीय हस्त संकेत

पुरुष अपनी दाहिनी कलाई (महिलाएं बाईं कलाई) सीधी करें व हथेली शरीर की तरफ करें। दाहिने हाथ के छाती के सामने से गुजरने के पश्चात हथेली को घुमाकर नीचे की तरफ करें व हाथ को नीचे की तरफ तब तक गति दें जब तक कि वह पिण्डली के स्थान तक न पहुंच जाए। बाजू को सीधा करें। ऊपर की तरफ गति करते समय तथा सीधे हाथ को काटते समय पुरुषों की बाईं कलाई (महिलाओं की दाहिनी कलाई) घूमती है जिससे हथेली शरीर की तरफ हो जाए। इसके साथ ही साथ हथेली को ऊपर बाएं कन्धे (महिलाएं दाएं कन्धे) की तरफ गति दें। जब हाथ अपनी स्थिति तक पहुंच जाए तो हथेली ऊपर की तरफ हो व अंगुलियां सामने की तरफ (चित्र 5-8)।

   

चतुर्थ हस्त संकेत

यह मुद्रा उपरोक्त मुद्रा के ही समान है जिसमें हाथों ने अपना स्थान बदल लिया है। पुरुषों के लिए बायां हाथ (महिलाओं के लिए दायां) अन्दर की तरफ गति करेगा व दायां हाथ (महिलाओं के लिए बायां) बाहर की तरफ गति करेगा। गतियां बाएं हाथ व फिर दाहिने हाथ को बदल कर करने की हैं। हाथों की स्थिति विपरीत हो जाती हैं (चित्र 5-9)। चारों हस्त संकेत लगातार बिना रूके करने हैं।

वृत्ताकार आकार की दैवीय शक्तियों को सुदृढ़ करना

चतुर्थ हस्त संकेत के पश्चात बिना गति को रोके, ऊपर वाला हाथ अन्दर की तरफ गति करता है तथा नीचे वाला हाथ बाहर की तरफ गति करता है। पुरुषों के लिए सीधी हथेली घूमती है और नीचे छाती की तरफ गति करती है। पुरुषों के लिए बायां हाथ (महिलाओं के लिए दायां) ऊपर की तरफ गति करेगा। जब दोनों बाजुएं छाती के पास पहुंचती हैं तो एक सीधी लाइन बनाती हैं (चित्र 5-10)। दोनों हाथों को खींच कर दोनों तरफ अलग-अलग करें (चित्र 5-11)। जबकि हथेलियों को घुमाकर नीचे की तरफ करें।

जब दोनों हाथ घुटनों के बाहर की तरफ के ऊपर पहुंच जाएं तो हाथों को कमर के स्तर पर रखें। बाजु व कलाइयां भी उसी स्तर पर रहें। दोनों हाथों को तनाव रहित रखें (चित्र 5-12)। यह स्थिति आन्तरिक आलौकिक शक्तियों को बाहर हाथों में खींचने और सुदृढ़ करने के लिए है। यह वृत्ताकार आलौकिक शक्तियां हैं। आलौकिक शक्तियों को सुदृढ़ करते समय हथेलियां गर्माहट, भारीपन, सुन्ना, जैसे कोई भार उठाया हो महसूस करेंगी। परन्तु इस संवेदना को जानबूझकर अनुभव करने की प्रयत्न नहीं करना है। इन्हें स्वभाविक तौर पर होने दें। जितना ज्यादा स्थिति में ठहरा जाए उतना अच्छा है, जब तक की और अधिक ठहरा न जाए।

   

स्तम्भाकार दैवीय शक्तियों को सुदृढ करना

पिछली मुद्रा का अनुसरण करते हुए, सीधा हाथ (महिलाएं बायां हाथ) घुमाएं जिससे हथेली ऊपर की ओर हो जाए व हाथ को उपर निचले क्षेत्र की तरफ गति दें। जब हाथ अपनी स्थिति में पहुंच जाए तो हथेली ऊपर की तरफ रहेगी व अन्दर के निचले क्षेत्र में ही ठहरेगी। उस समय जब दाहिना हाथ गति कर रहा है, बायां हाथ (महिलाएं दायां हाथ) को उठाएं और ठोड़ी की तरफ गति दें। हथेली नीचे की तरफ ही रहे न हाथ को ठोड़ी जितना उठाएं। बाजू तथा हाथ एक स्तर पर रहें। इस समय दोनों हथेलियां एक दूसरे की तरफ रहें व इस स्थिति में ठहरें (चित्र 5-13) यह स्तम्भाकार आलौकिक शक्तियों को ठीक करता है जैसे की ''हथेली की गर्जना'' इत्यादि। इस स्थिति में तब तक ठहरें, जब तक कि और ज्यादा ठहरा न जाए।

इसके पश्चात ऊपर वाला हाथ सामने की तरफ अर्ध्द वृत्त बनाता हुआ नीचे, अन्दर के निचले क्षेत्र तक पहुंचता है। इसी समय बाएं हाथ को ऊपर उठाएं व हथेली को घुमाते हुए नीचे की तरफ करें व तब तक उठाएं जब तक कि यह ठोडी के ठीक नीचे तक न पहुंच जाए (चित्र 5-14)। हाथ कंधे के स्तर पर रहें व दोनों हथेलियां आमने-सामने रहें। यह भी आलौकिक शक्तियों को सुदृढ करता है, परन्तु इसमें हाथों की स्थिति विपरीत होती है। हाथों को इस स्थिति में तब तक ठहराएं जब तक कि और ज्यादा न रूका जाए।


शान्त साधना

पूर्व स्थिति के पश्चात ऊपर वाले हाथ को अर्ध्द वृत्ताकार बनाते हुए अन्दर के निचले क्षेत्र तक ले जाएं। ल्यांग शोव जैयिन (चित्र 5-15) और शान्त साधना आरम्भ करें। दिंग (शान्त परन्तु मन की चेतन अबस्था) में ठहरें, जितनी ज्यादा देर उतना श्रेष्ठ।

     

समापन की स्थिति

हेशी करें (चित्र 5-16) दिंग से बाहर आएं व टांगों की एक-दूसरे के ऊपर की स्थिति समाप्त करें।


'फालुन गोंग' का अभ्यास करने के लिए कुछ मूल आवश्यकताएं और चेतावनी के शब्द


1. फालुन गोंग की क्रियाओं के पांचों संग्रहों का क्रमबध्द या चुनकर अभ्यास किया जा सकता है। किन्तु यह सामान्यत: आवश्यक है कि आप अभ्यास का आरंभ पहली क्रियाओं के संग्रह से करें। इसके अतिरिक्त, सर्वोत्तम होगा यदि आप पहली क्रियाओं के संग्रह को तीन बार करें। वास्तव में, बिना पहले संग्रह की क्रियाओं को किए हुए, आप दूसरे संग्रहों की क्रियाओं का अभ्यास कर सकते हैं। प्रत्येक संग्रह का अभ्यास एक बार में एक भी किया जा सकता है।

2. प्रत्येक गतिविधि बिल्कुल ठीक और एक स्पष्ट लय के साथ की जानी चाहिए। हाथ और बाहें आसानी से ऊपर-नीचे, पीछे-आगे, बायें और दाहिने चलनी चाहिए। शक्ति यंत्र का अनुसरण करते हुए, धीरे-धीरे, स्वाभाविक रूप से, निर्विघ्न क्रिया करें। अधिक तेज या अधिक धीरे गतिविधि न करें।

3. अभ्यास के दौरान, आप स्वयं को अपनी मुख्य चेतना के नियंत्रण में रखें, क्योंकि फालुन गोंग मुख्य चेतना में वृध्दि करता है। जानबूझ कर इधर-उधर न हिलें। जब शरीर हिले तो उस पर नियंत्रण करें। यदि आवश्यक हो जाये तो आप अपनी आंखें खोल सकते हैं।

4. सारे शरीर को तनाव रहित रखें, विशेषकर घुटने और नितम्ब क्षेत्रों को। यदि आप अकड़ कर खड़े होते हैं तो नाड़ियों में अवरोध उत्पन्न होगा।

5. क्रियायें करते समय, गतिविधियां तनाव रहित एवं स्वाभाविक, स्वतंत्र एवं विस्तारित, सरल एवं भार-मुक्त होनी चाहिए। गतिविधियां दृढ़ किन्तु कोमल, कुछ बलपूर्वक किन्तु बिना सख्ती या कठोरता के होनी चाहिए। इस प्रकार करने से स्पष्ट प्रभावशाली परिणाम प्राप्त होंगे।

6. प्रत्येक समय जब आप अभ्यास समाप्त करें, आप गतिविधियां बंद कर दें किन्तु अभ्यास यंत्र को बंद न करें। आपका केवल दोनों हाथों का जोड़ना (जी यिन) भर आवश्यक होगा। दोनों हाथ जोड़कर समाप्त करने का अर्थ है कि आपने गतिविधियां समाप्त कर दी हैं। किसी उद्देश्य को लेकर अभ्यास समाप्त न करें, क्योंकि 'फालुन' का घूमना रूक नहीं सकता।

7. जो कमजोर या लम्बे समय से बीमार हैं, वे अपनी स्थिति अनुसार अभ्यास करें। वे अभ्यास कम करें या पांचो संग्रहों में से किसी का भी अभ्यास कर सकते हैं। किन्तु जो गतिविधियां नहीं कर सकते वे बैठकर कमल की मुद्रा में अभ्यास कर सकते हैं। आवश्यक यह है कि आप अभ्यास नियमित करते रहें।

8. अभ्यास के लिए स्थान, समय या दिशा को लेकर कोई विशेष आवश्यकताएं नहीं हैं। किन्तु एक स्वच्छ स्थान और शांतिपूर्ण वातावरण वांछनीय है।

9. ये क्रियाएं बिना किसी मानसिक उद्देश्य के की जाती हैं जिससे आप कभी भटकेंगे नहीं। लेकिन 'फालुन गोंग' को अभ्यास की किसी और पध्दति से न मिलायें अन्यथा फालुन विकृत हो जायेगा।

10. अभ्यास करते समय यदि आपको शांतिपूर्ण स्थिति में पहुंचना असंभव लगे, तो आप गुरु के नाम का जप कर सकते हैं। जैसे समय गुजरता जायेगा, आप धीरे-धीरे शांतिपूर्ण स्थिति में पहुंच सकेंगे।

11. अभ्यास के दौरान कुछ कठिनाइयां उत्पन्न हो सकती हैं। यह कर्मों को चुकाने का एक तरीका है। प्रत्येक मनुष्य के अपने कर्म होते हैं। जब आप अपने शरीर में तकलीफ अनुभव करते हैं, तो उसे बीमारी न समझें। आपके कर्मों की समाप्ति के लिए और अभ्यास का रास्ता साफ करने के लिए, कुछ तकलीफें शीघ्र और पहले आ सकती हैं।

12. यदि आप बैठने वाली क्रिया के लिए, पैरों को एक के ऊपर एक करके नहीं बैठ सकते, तो पहले इस क्रिया को कुर्सी के एक किनारे पर बैठकर करें। इस प्रकार यह तरीका उतना ही प्रभावशाली हो सकता है। किन्तु, एक अभ्यासी के रूप में, आपको कमल की मुद्रा में आना होगा। जैसे समय गुजरता जायेगा, आप अवश्य यह कर सकेंगे।

13. शांतिपूर्ण क्रियाएं करते समय, यदि आप कोई चित्र या दृश्य देखें, तो उनकी ओर ध्यान न दें और अपने अभ्यास को जारी रखें यदि आपको कोई भयानक दृश्य हस्तक्षेप करे, तो आपको तुरंत यह याद रखना चाहिए कि ''मेरी रक्षा फालुन गोंग के गुरु कर रहे हैं। मैं किसी से नहीं डरता हूं।'' एक अन्य उपाय है कि आप गुरु लि के नाम का जप करें और अपने अभ्यास को जारी रखें।


[1] मन और शरीर को एक साथ जुडें

[2] शक्ति यंत्रों के अनुसार क्रिया करें

[3] आकाश जितना ऊँचा और अतुलनीय करुणामय

[4] सहस्त्र हस्त के साथ बुद्ध सीधे खड़े होते हैं

[5] विवेक का विकास और शक्तियों का संवर्धन

[6] हृदय की शान्ति और शरीर का हल्कापन

[7] जैसे एक अद्भुत और ज्ञानप्राप्ति की अवस्था में हों

[8] फालुन का उदय आरम्भ होता है

[9] शरीर को शुद्ध करें

[10] फा ऊपर और नीचे के शक्ति मार्गों को खोलता है

[11] ह्रदय करुणामय है और इच्छा दृढ़ है

[12] आकाश की ऊँचाई और पृथ्वी की गहराई तक पहुंचे

[13] फा का आवर्तन रिक्त अवस्था तक पहुंचता है

[14] ह्रदय एक शुद्ध रत्न की भांति स्वच्छ है

[15] अपने मूल और आत्मस्वरूप की और वापसी

[16] आप हल्का अनुभव करते हैं जैसे तैर रहे हों

[17] जैसे इच्छा के साथ, किन्तु बिना इच्छा के

[18] हस्त क्रियाएं शक्ति यंत्रों के साथ चलेंगी

[19] जैसे रिक्त हो, किन्तु रिक्त भी नहीं

[20] सरलता से गति करें या शांत हो जायें